हम हिन्दुओं के जीवन में चार धामों का विशेष महत्त्व है। हर मनुष्य को अपने जीवन काल में कम से कम एक बार तो इन चारों धामों की यात्रा करनी चाहिए । इन चारों धामों की यात्रा से मनुष्य को आत्मीय सुख और ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। और मनुष्य अपने जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है ।
कहते हैं कि ये चारों धाम सृष्टि के आरम्भ से पूर्व ही अपनी अलौकिक अवस्था में विध्यमान थे । उसी समय से ही भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रतिदिन चारों धामों की यात्रा पर निकलते थे। भगवान् विष्णु अपने दिनचर्या की शुरुआत में सबसे पहले वह बदरीनाथ में स्नान करते। इसके बाद वह गुजरात के द्वारिका जाते और नए वस्त्र धारण करते। द्वारिका के बाद ओडिशा के पुरी में महाभोग ग्रहण करते और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम में अपनी संध्या वंदना करने के पश्चात् विश्राम करते। जैसे ही सृष्टि बनी वैसे ही ये चारों धाम भी युग के साथ साथ अलौकिक से लौकिक होते चले गए। इसी प्रकार सतयुग में बद्रीनाथ धाम, त्रेतायुग में रामेश्वरम धाम , द्वापर युग में द्वारिका धाम और कलयुग में जगन्नाथ धाम का निर्माण हुआ ।
अलौकिक का मतलब होता है, जहाँ मनुष्य न पहुंच सके, जिसे मनुष्य की आंखे न देख सकें।
लौकिक का अर्थ, जिसे मनुष्य की आंखे देख सके और मनुष्य वहाँ जा सके और उसे छू सके।
तो आइये मैं आपको ले चलता हूँ हमारे लौकिक चार धामों की यात्रा पर।
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