शिव पार्वती विवाह | Shiv Parvati Vivah Katha in Hindi
माता सती के अग्नि कुंड में आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव बहुत विचलित हो गए थे, और गहरी तपस्या में लीन हो गए थे। जिसके चलते स्रष्टि में असंतुलन होने लगा। जिसके बाद आदिशक्ति ने शिव को पाने के लिए 107 बार धरती पर अलग-अलग रूपों में जन्म लिया। जब आदिशक्ति अपने पार्वती रूप में 108वीं बार महाराज हिमावन और रानी मैनावती के घर प्रकट हुईं तो उन्होंने शिवजो को पाने के लिए वर्षों तक घोर तपस्या की। जिसके फलस्वरुप शिवजी ने उन्हें उनकी तपस्या का फल देते हुए दर्शन दिए और भगवान ने पार्वती से वर मांगने को कहा। जिस पर माता पार्वती ने, शिव जी को ही अपने पति रूप में प्राप्त करने का वर मांग लिया।
जिसके फलस्वरुप शिव जी ने माता पार्वती को समझाया कि वह एक तपस्वी हैं। और एक तपस्वी से विवाह करना सरल कार्य नहीं होगा। शिवजी ने आगे समझाते हुए कहा कि, मैं एक बैरागी हूं। तुम मेरे साथ कहां और कैसे रहोगी। परन्तु माता पार्वती, शिव जी को अपने मन ही मन अपना पति मान चुकी थी। इसलिए वह अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहीं। शिव जी ने पार्वती को बहुत समझाया कि तुम किसी राजा से विवाह करो और वहां सुख-शांति से अपना जीवन यापन करो। लेकिन पार्वतीजी नहीं मानी, इसके चलते शिवजी का ह्रदय पिघल गया और वह विवाह के लिए मान गए।
शिवजी की बारात | Shivji Ki Barat
इसके बाद जब विवाह का समय आया तो शिवजी अपनी बारात के साथ पार्वती जी के यहां पहुंचे। शिवजी का अपना कोई तो था नहीं, इसलिए वे भूत प्रेत, गणों को अपनी बारात में लेकर महाराज हिमावन के यहां पहुंचे। कहा जाता है कि शिवजी का विवाह बहुत ही भव्य हुआ था। शिवजी के विवाह में सभी देवी देवता, असुर, राक्षस, गंधर्व, किन्नर, भूत, गण ,प्रेत और सभी योनि के जीव मौजूद थे।
शिव जी को पशुपति भी कहा जाता है, इसलिए विवाह में सभी प्रकार के पशु भी मौजूद थे। शिवजी का अपना कोई वंश का तो था नहीं इसीलिए शिवजी भूत, गण ,प्रेतों को ही अपनी बारात में लेकर चले गए। एक वैरागी होने के कारण शिवजी को यह भी नहीं मालूम था कि बारात में कैसे जाया जाता है। इसीलिए उनके गण-प्रेतों ने शिवजी को भस्म से ही सजा दिया और उनके पूरे शरीर में भस्म लगा दी और हड्डियों की माला पहना दी।
जब यह अनोखी बारात पार्वतीजी के द्वार पर पहुंची तो शिवजी के इस विचित्र रूप को देखकर महाराज हिमावन और रानी मैनावती ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ शिवजी के हाथों में देने से मना कर दिया। जिसके बाद नारद जी, पार्वतीजी और अन्य देवताओं के काफी समझाने के बाद भी जब दोनों नहीं माने तो, माता पार्वती ने शिव जी से आग्रह किया कि वे अपने सुंदर मनोहर दिव्य रूप में ही प्रकट होवें। जिसके बाद शिव जी ने सभी देवताओं को ऐसा करने के लिए आदेश दिया। सभी देवताओं ने शिव जी को दिव्य जल से नहला कर उनको दूल्हे के रूप में तैयार किया।
शिव जी के इतने मनोहर और दिव्य रूप को देखकर सभी चकित रह गए। शिव जी के सौन्दर्य के सामने देवी पार्वती का सौंदर्य भी फीका पड़ने लगा। जिसके फलस्वरूप रानी मैनावती के आग्रह पर शिवजी पुनः अपने वैरागी रूप में आ गए और इसी रूप में ही भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।
शिव शक्ति विवाह रस्म | Shiv Shakti Vivah Rasam
विवाह की एक रस्म में वर-वधु दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। जिसके बाद माता पार्वती की वंशावली का बखान तो खूब धूम-धाम से किया गया लेकिन जब भगवान शिव की बारी आई तो शिवजी मौन ही बैठे रहे। क्युकि उनका तो कोई था ही नहीं। जिसके बाद महाराज हिमावन को विचलित होता देख नारद जी बोले कि भगवान शिव का कोई भी वंश नहीं है, ना ही उनके माता-पिता हैं। न ही इनका कोई परिवार है, शिवजी तो स्वयंभू हैं। इन्होने खुद की रचना स्वयं ही की है।
शिवजी का न तो कोई गोत्र ही है और न ही कोई नक्षत्र और न ही कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। यह आदि हैं अनंत हैं सब चीजों से परे हैं। तपस्वियों में तवस्वी, सबसे महान योगी हैं। यह पूरी धरती ही उनका परिवार है। नारद द्वारा, शिवजी की इस महिमा का बखान करने के बाद महाराज हिमावन को अपनी भूल का ज्ञान हुआ और इसके बाद ही शिव जी का विवाह माता पार्वती से होना संपन्न हो पाया।