Mata Devaki 6 Son Katha | माता देवकी की 6 पुत्रों की कथा
कौन थे माता देवकी के 6 पुत्र जिन्हें कंस ने जन्म लेते ही मार दिया था। आइये मैं आपको इसकी कथा के बारे में बताता हूँ।
सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा ने मरीचि नाम के अपने एक मानस पुत्र को जन्म दिया। मरीचि की पत्नी ऊर्णा ने 6 देवताओं को जन्म दिया। ये 6 देवता ब्रह्मा जी की कृपा पात्र थे। जिसके कारण ब्रह्मा जी इनकी छोटी-मोटी गलतियों को नज़रंदाज़ कर दिया करते थे। लेकिन एक बार अपने इसी घमंड में चूर होकर देवताओं ने ब्रह्मा जी का घोर अपमान कर दिया। उनके इस असुर आचरण को देखते हुए ब्रह्मा जी ने उन्हें दण्ड देते हुए असुर योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
श्राप मिलते ही उन 6 देवताओ को अपनी भूल का आभास हुआ और ब्रह्मा जी से क्षमा याचना करने लगे। इस पर ब्रह्मा जी ने उनके श्राप को कम करते हुए कहा कि मेरा यह श्राप व्यर्थ तो नहीं जायेगा परन्तु असुर योनि में जन्म के बाद भी तुम्हें अपने पूर्व जन्म का ज्ञान होगा।
इसके बाद 6 देवताओं ने कालनेमि नाम के एक असुर के यहाँ जन्म लिया। इसके बाद उन्होंने हरिण्यकश्यप के यहाँ जन्म लिया अपने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण वह कोई भी गलत काम नहीं करते थे और सदैव ही तपस्या में लीं रहते थे। एक बार अपनी तपस्या से उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा।
अपनी असुर बुद्धि के चलते उन्होंने एक असुर जैसा ही वर माँगा कि हमारी मौत न ही किसी देवता के हाथों हो, न गन्धर्वों के, न ही हम किसी हारी-बीमारी से मरें। उनका ये वरदान सुनते ही ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और वहाँ से अपने धाम को वापस लौट गए। इधर हिरण्यकश्यप अपने पुत्रों से देवताओं की उपासना करने के कारण नाराज़ था। उसने कहा कि-पुत्रों तुमने मेरी उपासना के वजाय किसी देवता की उपासना क्यों की। तुम्हें कोई वर चाहिए था तो मैं तुम्हें वह वर दे देता।
किसी देवता की तपस्या कर तुम सबने मेरा अपमान किया है। इसीलिए मैं तुम सबका त्याग करता हुँ और ये श्राप देता हूँ कि तुम सबकी मृत्यु किसी असुर के हाथों ही होगी।
इस प्रकार से काफी योनियों में भटकने के बाद वह सब योगमाया की शरण में गए और उनकी इस स्तिथि से द्रवित होकर योगमाया ने उन्हें माता देवकी के गर्भ में डाल दिया। कंस, कालनेमि का ही पुनर्जन्म था और इस प्रकार वह सब अपने ही पूर्व जन्म के पिता के हाथों मृत्यु को प्राप्त हो कर सुतल लोक में चले गए।
अभी इनकी मुक्ति नहीं हुई थी। क्यों कि माता देवकी के मन में उनके लिए ममता अभी शेष थी और जब तक किसी का इस धरती पर कोई काम अधूरा रह जाता है या फिर मरने वाले की कोई भी इच्छा अधूरी रह जाती है। तब तक आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है और वह इसी जन्म और मृत्यु के बंधन से कभी भी मुक्त नहीं हो पाती है और बार-बार इसी मृत्यु लोक में अलग-अलग योनियों में जन्म लेती रहती है।
काफी समय के बाद माता देवकी ने अपने पुत्र कृष्ण से अपने इन 6 पुत्रो को वापस ले आने की जिद की। तो श्रीकृष्ण माता के इस आदेश को मानकर सुतल लोक से उन्हें ले आते हैं और इस प्रकार माता देवकी के द्वारा उन पर अपनी ममता लुटाने के बाद ही उनकी मुक्ति हो पाती है और वह पुनः अपने देव रूप में वापस आ जाते हैं।