बेलपत्र कथा, फायदे और नुकसान | Belpatra Story, Advantages And Disadvantages

बेलपत्र की कथा, बेलपत्र की उत्पत्ति कैसे हुई, बेलपत्र को खाने के फायदे और नुकसान | Belpatra Ki Kahani in Hindi, Belpatra Khane Ke Fayde Aur Nuksan

इस लेख में हम आपको बेलपत्र के बारे में सारी जानकारियाँ देने की कोशिश करेंगे। जैसे बेलपत्र की उत्पत्ति कैसे हुई, इसे खाने के क्या फायदे है और क्या नुकसान है, इसकी क्या-क्या मान्यताएं हैं आदि इत्यादि।

शिव उपासना में बेलपत्र का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि एक डाकू अपना जीवन व्यापन के लिए राहगीरों को लूटता है। एक बार वो रात्रि के समय एक पेड़ पर बैठ कर अपने शिकार का इंतजार करता-करता उस पेड़ के पत्तो को तोड़- तोड़ कर नीचे फेकता रहता है। वह बेलपत्र का पेड़ होता है, और उसके नीचे शिव लिंग स्थापित होता है। डाकू के द्वारा फेका गया पत्ता शिव लिंग पर गिरता है और उसके करुण भाव के कारण उसमें एक सच्ची श्रद्धा का संचार होता है। जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ उसे दर्शन देते हैं और उसकी पीढ़ा को समाप्त कर उसे सही राह पर लाते हैं।

बेलपत्र की कथा | story of belpatra

1. एक बार की बात है, जब भगवान् विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की सईया पर विश्राम कर रहे थे, तभी देवी लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु से वरदान माँगा कि, हे नाथ ! आपके हृदय में सदैव मेरा ही वास रहे। जिस पर नारायण ने कहा कि अनंतकाल से ही मेरा हृदय महादेव की ही भक्ति में लीन है। तो आपको यह वरदान केवल महादेव ही दे सकते हैं। जिसके लिए देवी लक्ष्मी कैलाश पर्वत पर जा कर निर्जल, निराहार, और बिना सोये महादेव की तपस्या करने लगी। जो कि सहस्त्रों वर्षों तक चली।

अपनी इस तपस्या को और भी कठिन बनाने के लिए उन्होंने अपने अंग काटकर महादेव को अर्पित करने शुरू कर दिए। जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। उनके दर्शन मात्र से ही देवी लक्ष्मी की काया पूर्ववत सुन्दर हो गयी। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने महादेव से सदैव विष्णु भगवान् के ह्रदय में वास करने का वरदान प्राप्त किया, और कहा ।

हे प्रभु ! मैं तो सहस्त्रो वर्षो तक आपकी तपस्या करने में समर्थ रही, परन्तु एक साधारण नारी कैसे अपना तप कर सकती है। कलयुग में तो मनुष्य अल्पायु होते है। देवी लक्ष्मी के इस कथन से महादेव ने अग्नि में से बेलपत्र का पेड़ प्रकट किया, जो कि देवी लक्ष्मी के अंग की आहुतियों से ही उत्पन्न हुआ था, और कहा कि अब से जो भी इस बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाएगा उसे आपके सामान ही सहस्त्र वर्षो के तप का लाभ प्राप्त होगा। तभी से शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाये जाते हैं और इसीलिए बेलपत्र शिव जी को अत्यंत ही प्रिय हैं।

2. स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती के पसीने की बून्द मंदराचल पर्वत पर गिर गयी। जिससे ही बेलपत्र का पेड़ उत्पन्न हो गया। चूकि माता पार्वती के पसीने से यह उन्पन्न हुआ, इसीलिए बेलपत्र में माता पार्वती के सभी रूप निवास करते हैं, और इसीलिए ही शिव जी को यह अत्यंत प्रिय हैं। माता पार्वती बेलपत्र के पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।

3. जब देवताओ और असुरो ने समुद्रमंथन किया तो समुद्र मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला। पूरी सृष्टि को इस भयानक विष के प्रभाव से बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और उनका पूरा शरीर अत्यधिक गरम हो गया।

जिसकी वजह से आसपास का वातावरण भी जलने लगा। चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है, इसलिए सभी देवी देवताओं ने शिवजी को बेलपत्र खिलाना शुरू कर दिया। बेलपत्र के साथ साथ शिवजी को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित किया गया। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी।

बेलपत्र के सम्बन्ध में मान्यताएं | Beliefs regarding Belpatra

  • शिव पुराण के अनुसार अगर किसी शव पर बेलपत्र की छाँव पड़ जाती है। तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, और ऐसी पुण्यात्मा परमधाम शिव लोक को जाती हैं।
  • सोमवार को बेलपत्र को नहीं तोडा जाता है, इसीलिए सोमवार से पहले दिन रविवार को ही बेलपत्र को तोडा जाता है।
  • सूर्यास्त होने के बाद बेलपत्र को नहीं तोडा जाता है।
  • कहते हैं कि 4 – 5 फीट ऊंचाई वाले बेलपत्र के पेड़ से ही बेलपत्र को तोडा जाना चाहिए। इससे कम ऊंचाई वाला पेड़ बेबी पेड़ माना जाता है। जो कि शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता है।
  • वैसे तो बेलपत्र 3 पत्तियों का होता है। माना जाता है कि 4 या 5 पत्तियों के बेलपत्र को चढ़ाने से शिवजी मनोकामना को जल्दी पूरा करते हैं। परन्तु 3 पत्तियों वाला बेलपत्र ही बड़ी कठिनाई से मिलता है, तो 4 या 5 पत्तियों वाला बेलपत्र का मिलना बड़ी सौभाग्य की बात मानी जाती है।
  • बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते हैं।
  • बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है और इसे लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
  • बेलपत्र को माता लक्ष्मी का और सफ़ेद आक के पेड़ को भगवान् गणेश का स्वरुप माना जाता है। इसीलिए घर में बेल के पेड़ और सफ़ेद आक को जोड़े से लगाने पर घर से लक्ष्मी कभी भी नहीं जाती हैं और धन वर्षा होती है।
  • बेलपत्र का पेड़ वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाये रखने का काम करता है।
  • पुराणों के अनुसान जिस स्थान पर बिल्वपत्र का वृक्ष होता है उस स्थान को काशी विश्वनाथ तीर्थ के सामान पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
  • बेलपत्र की 3 पत्तियों को 3 गुणों और त्रिदेव का प्रतीक माना जाता है। अर्ताथ रजोगुण द्वारा ब्रह्माजी सृष्टि रचते हैं। सतोगुण द्वारा श्री विष्णु सृष्टि का पालन पोषण करते है, और तमोगुण द्वारा महादेव सृष्टि का संहार करते हैं।

बेलपत्र को खाने के नुकसान | Belpatra Khane Ke Nuksan

अधिक मात्रा में बेलपत्र का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। यह पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है। जैसे कि पेट में तकलीफ हो सकती है और दस्त या उलटी भी हो सकती है। इसलिए, बेलपत्र का सेवन सीमित मात्रा में ही किया जाना चाहिए और अगर आपको इससे कोई तकलीफ होती है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।

बेलपत्र को खाने के फायदे | Belpatra Khane Ke Fayde

  • आयुर्वेदिक मान्यताओं के अनुसार इसकी पत्तियों का रस पीने से श्‍वास संबंधी रोगों में भी आराम मिलता है। इसके अलावा बेलपत्र का सेवन ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल में रखने में मदद करता है। बेलपत्र में मौजूद फाइबर और कई अन्य पोषक तत्व ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करते हैं।
  • बेलपत्र का सेवन करने से व्यक्ति की पेट की सभी समस्याएं जैसे एसिडिटी, गैस, कब्ज और अपच को दूर करने में सहायता मिलती है। बेलपत्र में मौजूद फाइबर पेट साफ करके एसिडिटी में राहत ही नहीं बवासीर में भी राहत देता है।
  • यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। हृदय स्वास्थ्य में सुधार करता है। शरीर को ठंडक प्रदान करता है।
  • बेलपत्र में विटामिन सी, ए के और एलोवेरा शामिल होते हैं, जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। विटामिन सी की वजह से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। इसके सेवन से पाचन तंत्र सुधरता है। इससे मोटापा और डायबिटीज कंट्रोल में भी मदद मिलती है।

बेलपत्र का उपयोग सावन में सबसे अधिक होता है। क्युकि यह महीना भगवान् शिव को अत्यंत ही प्रिय है।

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