श्री गणेश का महोत्कट विनायक अवतार | Mahotkat Vinayak Birth Story

श्री गणेश का महोत्कट विनायक अवतार | महोत्कट विनायक (गणेश जी) जन्म कथा | Ganesh Ji Ka First Avatar Mahotkat Vinayak | Ganesh Ji ke Mahotkat Vinayak Avatar Ki Kahani


गणेश पुराण के अनुसार महागणाधिपति (जो कि गणेश का परम स्वरुप है) ने अनेकों अवतार लिए जिनमें से सर्वप्रथम अवतार सतयुग में 33 कोटि देवताओं की माता, देवमाता अदिति और महर्षि कश्यप के यहाँ महोत्कट विनायक के रूप में लिया। तो आइए मैं आपको बताता हूँ भगवान् महागणाधिपति के सर्वप्रथम अवतार महोत्कट विनायक के जन्म की कथा-

सतयुग में ऋषि रुद्रकेतु और शारदा की दो जुड़वाँ संतानें हुई। जिनका नाम देवान्तक और नारान्तक था। इन दोनों ने बहुत वर्षों तक भगवान् शिव की कठोर तपस्या की और देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य, नाग, पशु किसी से भी न मरने का वर प्राप्त किया। महादेव से यह वर मिलने के साथ ही दोनों भाइयों में अपनी शक्ति का घमंड आ गया और दोनों भाई अपने आप को अजर-अमर समझने लगे।

अपनी शक्ति के मद में चूर होकर दोनों ने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया तथा देवताओं को भी स्वर्ग लोक से निष्काषित कर उनके द्वारा जीते गए तीनों लोकों में से किसी भी लोक में निवास करने पर प्रतिबंध लगा दिया। जिससे परेशान होकर सभी देवता छिप कर रहने लगे और मनुष्य रूप में वन-वन भटकने के लिए मजबूर हो गए। एक दिन सभी देवता अपने माता-पिता (देवमाता अदिति और ऋषि कश्यप) के आश्रम पहुंचे और अपनी सारी परेशानी उनके समक्ष कह सुनाई। जिसे सुनकर दोनों को बहुत दुःख हुआ।

इसी बीच में देवमाता अदिति को अपने नए पुत्र के आगमन का अनुभव हुआ। माता की इस शंका का निवारण उनके पुत्र वामन देव ने किया। उन्होंने बताया कि माँ जो आपको अनुभव हो रहा है, वह सत्य है, और शीघ्र की महागणाधिपति ही आपके पुत्र के रूप में अपना प्रथम अवतार लेंगे। जिनका उद्देश्य देवान्तक और नारान्तक का वध करना होगा। जिसके आपके पुत्रों को (देवताओं को) उनका अधिकार और देवलोक पुनः प्राप्त होगा ।

पुत्र प्राप्ति की अधीरता माता को दिन-प्रदित व्याकुल करने लगी और इसी बीच माता ने प्रण लिया कि वह तब तक महागणाधिपति की पूजा करती रहेंगी जब तक वह उन्हें दर्शन नहीं दे देते । अनेक वर्षों की कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान् महागणाधिपति ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मेरे इस अवतार का उद्देशय केवल देवान्तक और नारान्तक का वध करना ही होगा। जैसे ही मैं इन दोनों का वध कर दूंगा वैसे ही मुझे जाना होगा। तो आप मुझे यह वचन दें कि जब मैं वापस जाऊंगा तो आपकी ममता मुझे नहीं रोकेगी। माता ने यह वचन भगवान् को दिया और वह शीघ्र ही उनके पुत्र के रूप में आएंगे ऐसा कहकर अंतर्ध्यान हो गए।

Mahotkat Vinayak Ganesh

कुछ समय पश्चात् माता के यहाँ महागणाधिपति अपने दशभुज अवतार में प्रकट हुए और ऋषि कश्यप ने उनका नाम महोतक विनायक रखा। उनके उपनयन संस्कार पर माता पारवती ने अपना वाहन सिंह, ब्रह्मदेव ने अपना कमल पुष्प, नारायण ने अपना चक्र, महादेव ने अपना त्रिशूल और सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये और उन्हें आशीर्वाद दिया।

कुछ समय पश्चात् काशी में राजा के पुत्र की शादी का एक विशाल आयोजन आयोजित हुआ। राजा के आयोजन में विघ्न उत्पन्न करने के लिए देवान्तक और नारान्तक ने काशी पर आक्रमण की सूचना लेकर अपने महाप्रलयंकारी दूत कन्दर को भेजा। जिससे परेशान होकर राजा महर्षि कश्यप के पास पहुंचे और उन्हें अपने साथ काशी आने का आग्रह किया जिससे कि वह अपने पुत्र का विवाह बिना किसी परेशानी के कर सके। जिसके लिए ऋषि ने अपने पुत्र विनायक को उनके साथ भेज दिया। क्युकि विनायक के जीवन का उद्देश्य ही देवान्तक और नारान्तक का वध करना था।

माता ने अपने पुत्र के मार्ग के लिए विनायक के मनपसंद मोती चूर के लड्डू बनाये। अपनी खाने की पोटली लिए विनायक राजा के साथ काशी को निकल पड़े। मार्ग में ही देवान्तक और नारान्तक ने राक्षसी ध्रिमभा को उनका मार्ग रोकने के लिए भेजा। जिनसे लड़ते हुए वह उसके राक्षसी के पति ध्रुमक्ष के सामने जा पहुंचे। जो कि विनायक को मारने के लिए एक अस्त्र के लिए ब्रह्मदेव की तपस्या कर रहा था। ध्रुमक्ष का यह तप पूर्ण हो भी गया लेकिन विनायक ने उसी के वरदान के उसके अस्त्र से ही उसका अंत कर दिया। जिसका बदला लेने के लिए ध्रुमक्ष के पुत्र जगन और मनु निकल पड़े। जिन्हें वरदान प्राप्त था कि वह किसी का भी स्पर्श कर उसकी संपूर्ण शक्ति सोख सकते थे।

एक लकड़हारे का रूप धर माँ बेटे तीनों ने मिलकर विनायक को अपनी कुटिया में बुलाया। विनायक को उनकी कुनीति समझ में आ चुकी थी। इससे बचने के लिए उन्होंने एक युक्ति निकाली और माता पारवती से उबटन लेने के पहुंच गए। जिस पर माता ने उन्हें पुत्र कहकर सम्बोधित किया। जिस पर विनायक ने उन्हें इसी उबटन से प्रकट होकर उनका पुत्र बन कर आने का वचन दिया। इसके बाद विनायक ने पूरी उबटन अपनी शरीर पर लगा ली। जिससे कि जगन और मनु उनकी त्वचा को स्पर्श न कर सके और विनायक ने वहीं उन तीनों का उद्धार कर दिया।

इन चारों की मृत्यु की सूचना पाकर देवान्तक और नारान्तक ने कन्दर और खूपक नामक असुरों को विनायक को मारने के लिए भेजा। लेकिन विनायक ने इन दोनों का भी उद्धार कर दिया।

इसके बाद विनायक और काशी नरेश काशी पहुंच गए। जहाँ विनायक का एक भक्त, जिसका नाम शुक्ल शर्मा था, निवास किया करता था, जो कि विनायक की भक्ति भाव से पूजा किया करता था और विनायक के दर्शन करना चाहता था। परन्तु उसकी इस पूजा से उसके भाई-भाभी को बड़ी ही आपत्ति थी।

काशी में विनायक के आने की खबर सुन, शुक्ल ने विनायक को अपने यहाँ भोज के यहाँ आमंत्रित किया और यह बात अपने भाई-भाभी को बताई। परन्तु उन्होंने उसकी बात का विश्वाश नहीं किया और उसकी हसी उडाई। जिसके कारण उसने कहा कि अगर भगवान् आज मेरे यहाँ भोज के लिए नहीं आए तो मैं यह घर छोड़ कर चला जाऊंगा। शुक्ल बहुत गरीब ब्राह्मण था वह अपने भाई-भाभी से विनायक के भोजन के लिए कुछ अन्न देने की प्रार्थना कर रहा था। परन्तु वह उसे अन्न देना नहीं चाहते थे। शुक्ल की बहुत प्रार्थना करने के बाद उन्होंने उसे केवल एक मुट्ठी चावल ही दिए। जब प्रभु उसके यहाँ भोज के लिए आए तो उसने वही चावल पका कर प्रभु को खिलाये। जिस पर उसके भाई-भाभी को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने विनायक और शुक्ल से माफ़ी मांगी और सारा परिवार विनायक का भक्त बन गया।

इसके बाद देवान्तक और नारान्तक ने एक के बाद असुर काशी पर आक्रमण करने के लिए भेजे। किन्तु विनायक ने सभी का वध कर दिया। अंत में नारान्तक, विनायक से युद्ध के लिए आया तो विनायक ने अपनी खडग (तलवार) से उसका शीश काट दिया। जिसका बदला लेने के लिए देवान्तक भी विनायक से युद्ध के लिए आता है। युद्ध में देवान्तक, अपने प्रहार से विनायक के एक दन्त को तोड़ देता है। अपने टूटे हुए उस दन्त से ही विनायक, देवान्तक का वध कर देते हैं।

उन दोनों का वध करने के बाद वह अंतिम बार अपनी माता से मिलने पहुंचे। किन्तु महागणाधिपति ने उन्हें ऐसा करने से रोका। क्योंकि विनायक के जीवन का उद्देश्य देवान्तक और नारान्तक का वध करना ही था, जो कि पूरा हो चुका था। इसीलिए उन्होंने देवमाता अदिति को वचन दिया कि वह अपने अगले जन्म में एक बार उनसे मिलने जरूर आएंगे।

तो यह थी महोत्कट विनायक के जन्म की कथा।

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