हरियाली तीज कथा | Hariyali Teej Katha

हरियाली तीज कथा | Hariyali Teej Katha

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार हरियाली तीज 19 अगस्त शनिवार की है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन गौरी−शंकर की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। व्रती इस दिन सोलह सिंगार करके पूजा करने के बाद कथा पढ़ती है। लेकिन क्या आपको पता है इस तीज का नाम हरतालिका (Hartalika Teej vrat katha) क्यों पड़ा। अगर नहीं, तो आइए आज हम आपको इसके पीछे की कथा को बताते हैं।

हरियाली तीज कथा | Hariyali Teej Katha

शिवजी ने देवी पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाते हुए बताया कि, तुमने मुझे अपने पति रूप में पाने के लिए हिमालय पर जाकर गंगा किनारे कई वर्षो की कठिन तपस्या की थी। उसी समय नारद जी तम्हारे पिता हिमालय के पास गए और श्री हरी विष्णु से तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव रखा। जिस पर तुम्हारे पिता ने इसकी स्वीकृति दे दी।

इस अनहोनी की बात का जब तुम्हे पता चला तो तुम विलाप करने लगी। तुम्हारी सखी द्वारा तुम्हारे विलाप का कारण पूछे जाने पर तुमने उसे सारी बात कह सुनाई और मुझसे विवाह नहीं हुआ तो अपने प्राण त्यागने को कहने लगी। इस पर तुम्हारी सखी ने तुम्हे कहा कि मैं तुम्हे एक ऐसे स्थान पर ले चलूंगी जहाँ कोई भी तुम्हे नहीं ढूंढ पायेगा। सखी तुम्हे हिमालय जी की दृष्टि से बचाकर एक घने वन में ले गयी। जहाँ पर तुम्हे कोई भी नहीं ढूंढ सकता था।

देवी पार्वती की तपस्या हुई सफल | Goddess Parvati’s penance was successful

इधर तुम्हारे पिता को घर में तुम कही भी नहीं मिली तो उन्होंने तुम्हे चारो और ढूँढना शुरू कर दिया। पर तुम उन्हें आकाश पाताल कही भी न मिल सकी। इधर तुमने एक गुफा में भूखी-प्यासी रहकर मेरे नाम की तपस्या आरम्भ कर दी। तुमने बालू रेत से मेरा शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा-अर्चना के साथ-साथ रात्रि जागरण भी किया। जिससे फलस्वरूप श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को तुम्हरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे तुम्हारी तपस्या का फल देने आना ही पड़ा। तब मेने तुम्हारे द्वारा मांगे गए वर के अनुसार तुम्हे मेरी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। जिसके बाद में कैलाश वापस चला गया।

प्रातः बेला में जब तुम पूजन सामग्री को नदी में प्रवाहित कर रही थी। तभी तुम्हारे पिता हिमालय वहाँ आ गए और तुम्हे वहाँ से घर वापस चलने को कहा। पर तुमने उनसे बोला कि महादेव ने मेरा वरण कर लिया है। अब मैं किसी और से विवाह नहीं कर सकती। अगर आप मेरा विवाह महादेव से करवा सकते हैं। तो ही मैं आपके साथ वापस घर चलूंगी, अन्यथा नहीं। तुम्हारी इस मांग के आगे तुम्हारे पिता झुक गए और उन्होंने शास्त्र विधि हमारा विवाह करवा दिया।

सखी द्वारा माता पार्वती को हर के ले जाने के कारण ही इस व्रत को हरतालिका भी कहा जाने लगा । शंकर जी ने माता पार्वती को यह भी बताया कि जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हरे सामान ही अचल सुहाग मिलेगा।

श्रावण मास वाली तीज को श्रावणी तीज, हरियाली तीज या छोटी तीज भी कहा जाता है और भाद्रपद मास वाली तीज को हरतालिका तीज या हरितालिका तीज कहा जाता है। दोनों का व्रत भी एक जैसा है तो कथाये भी एक जैसी ही हैं।

हरियाली तीज की मान्यताएं | Beliefs of Hariyali Teej

मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। कहते हैं कि महादेव को पति रूप में पाने के लिए, माता पार्वती को 108 बार जन्म लेना पड़ा। तब जाकर 108वीं बार अपने कठोर तप और साधना से माता को भगवान् शिव अपने पति रूप में प्राप्त हो सके। तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ।

इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके गौरी शंकर की पूजा करती हैं। उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है। साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिवजी ने आशीर्वाद दिया कि, जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव-पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर होने के साथ-साथ ही उन्हें योग्य वर की प्राप्ति भी होगी। सुहागन स्त्रियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसीलिए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत को रखती हैं।

हरियाली तीज का उत्सव | celebration of Hariyali Teej

इस दिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करती हैं, झूले झूलती हैं, हरे वस्त्र धारण करती हैं, हाथो में मेहंदी लगाती हैं, गीत गाती हैं और नाचती हैं। इस दिन जगह-जगह पर विशाल मेलो का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान वस्त्र और मिठाईया भेजी जाती हैं। मायके से आये इन्ही वस्त्रों को पहनकर और श्रृंगार करके इस व्रत को करने की प्रथा प्रचलित है।

हरियाली तीज व्रत | Hariyali Teej fast

यह व्रत करवाचौथ के व्रत से अघिक कठिन माना जाता है। क्योंकि करवाचौथ के व्रत में तो सारा दिन निर्जल व्रत रहकर सायकाल में चाँद को देखकर व्रत को खोल लिया जाता है। परन्तु इस व्रत में सारा दिन निर्जल व्रत रहकर भी अगले दिन की पूजा करके व्रत को खोला जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है।

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