कैसे हुआ जगन्नाथ पुरी का धाम अलौकिक से लौकिक | Jaane Kese Jagannath Puri Dham Hua Alokik Se Lokik

जगन्नाथ पुरी का धाम | Jagannath Puri Dham

जगन्नाथ पुरी, भगवान् विष्णु का एक ऐसा धाम जहाँ, जो कोई भी भगवान् जगन्नाथ के एक बार दर्शन कर ले, तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं और वह जन्म और मृत्यु के बंधन के मुक्त हो जाता है। फिर चाहे उसके कर्म कैसे भी हो। ऐसा है जगन्नाथ पुरी का यह धाम। कहते हैं कि जो भी मनुष्य सच्चे ह्रदय से इस धाम की यात्रा करता है भगवान् जगन्नाथ उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

अलौकिक (अदृश्य) का मतलब होता है, जहाँ मनुष्य न पहुंच सके, जिसे मनुष्य की आंखे न देख सकें।

लौकिक (दृश्य) का अर्थ, जिसे मनुष्य की आंखे देख सके और मनुष्य वहाँ जा सके और उसे छू सके।

सृष्टि के आरम्भ में जब प्रथम बार महाराज इंद्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ पुरी धाम को अलौकिक से लौकिक में बदला गया, तो प्रथम कलयुग के अंत के बाद जब दुसरे सतयुग का आरम्भ हुआ तब यमलोक खाली हो गया, यमदूत कार्यरहित हो गए और यमराज के पास भी कोई कार्य न रहा और चित्रगुप्त जी के, मनुष्य के कर्मों के लेखा-जोखा वाले कागज़, पर भी धूल पड़ने लगी।

अब सतयुग में वैसे ही सभी लोग पुण्य कर्म ही करते थे। परन्तु जो कोई भी थोड़े बचे लोग पाप कर्म करते, वह भी जगन्नाथ पुरी जा कर अपने समस्त पापों से मुक्त हो जाते और प्रभु धाम को प्राप्त होते। इस पर यमराज ने सोचा कि ऐसे तो सृष्टि का संतुलन ही नष्ट हो जायेगा।

यदि सभी प्राणी यहाँ आकर पापमुक्त हो जायेंगे, मोक्ष पा लेंगे तो सृष्टि में जीवन, मरण और पुनर्जन्म के साथ जीवन का चक्र ही मिट जायेगा और समस्त संसार शीघ्र ही जीवन और जीवों से लुप्त हो जायेगा। अपने इसी विचार से यमदेव भी इस धाम की यात्रा पर निकल गए कि वह प्रभु से इस धाम को फिर से अलौकिक करवा देंगे। यह सब बात जब नारद जी को पता चली तो नारद जी भी यमदेव से विपरीत इच्छा लिए, प्रभु के धाम को लौकिक रखने की इच्छा को लेकर, प्रभु भक्ति में लीन जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर निकल गए।

दोनों की भक्ति से प्रसन्न होकर जब प्रभु जगन्नाथ जी ने दर्शन दिए तो दोनों ने अपनी अपनी इच्छा बताई। यमदेव ने प्रभु से जगन्नाथ पुरी को फिर से अलौकिक करने की बात कही तो नारदजी ने पुरी को इसी प्रकार लौकिक रखने की बात कही और कहा कि इसी में समस्त मनुष्यों का कल्याण है। मनुष्य के कल्याण को को इस धाम से वंचित क्यों रखा जाये इसीलिए यह यथावत ही रहना चाहिए। इसी कारण दोनों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रभु ने कहा कि-

दोनों ही भक्तों ने सच्चे मन से मेरी भक्ति की है सच्ची श्रद्धा से मेरे तीर्थ की यात्रा की है। इसीलिए यमदेव की इच्छा अनुसार पुरी का यह धाम अलौकिक (लुप्त) रूप में स्थापित रहेगा और भगवान् अपने इस अलौकिक धाम में महाभोग के लिए आते रहेंगे।

देवर्षि नारद की इच्छा अनुसार हर कल्प के कलयुग में पुरी धाम पुनः अलौकिक से लौकिक होगा। और कहा कि प्रत्येक बार द्वापर युग में आपको जगन्नाथ पुरी की प्रतिमाओं का आभास भगवान् के श्रीकृष्ण अवतार , बलराम जी और सुभद्रा जी के माध्यम से ही होगा और प्रत्येग बार प्रतिमा स्थाप्त में आप भी महाराज इंद्रद्युम्न की सहायता करेंगे और इसी प्रकार प्रत्येक कल्प के कलयुग में पुरी धाम पुनः अलौकिक से लौकिक होगा। ऐसा कहकर भगवान् अपने पुरी धाम को पुनः लौकिक से अलौकिक कर देते हैं और इसी प्रकार से यह घटनाक्रम प्रत्येक कल्प के कलयुग में दोहराया जाता है।

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