कजरी तीज व्रत कथा और पूजा विधि | Kajali Teej Kajari Teej Vrat Katha in Hindi or Pooja Vidhi

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हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से पांचवे माह-भादों के, कृष्ण पक्ष की तीज को, कजली तीज या कजरी तीज या बड़ी तीज की तरह मनाया जाता है। आसान भाषा में रक्षाबंधन के 3 दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से 5 दिन पहले, की जो तीज आती है, उसे ही कजली तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नीम के पेड़ की टहनी की पूजा की जाती है।

कब है कजरी तीज 2023 | Kajari Teej 2023

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2023 में कजरी तीज, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 01 सितंबर रात्रि 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जाएगी और 02 सितंबर रात्रि 10 बजकर 49 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। तो ऐसे में कजरी तीज 2 सितम्बर 2023, शनिवार को मनाई जाएगी।

हमारे देश में मुख्य रूप से 4 तरह की तीज मनाई जाती है।

  1. अखा तीज।
  2. हरियाली तीज।
  3. कजली तीज या कजरी तीज या बड़ी तीज।
  4. हरितालिका तीज या हरतालिका तीज।

कजरी तीज , कजली तीज का महत्व | Kajli Teej Kajari Teej Mahatv

तीज एक ऐसा त्यौहार है, जो शादीशुदा लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह व्रत पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए रखा जाता है। दूसरी अन्य तीजों की तरह यह भी हर सुहागन के लिए बहुत महत्वपूर्ण पर्व होता है। इस दिन भी पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है, व कुआरी लड़की अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती है।

  • इस दिन औरतें झूला झूलती हैं। और पूरा दिन गीत गति और नाचती हैं।
  • शादीशुदा औरतें अपने पति की लम्बी आयु के लिए व कुआरी लड़कियाँ अच्छे वर प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती है।
  • तीज का यह व्रत कजली गानों के बिना अधूरा है. गाँव में लोग इन गानों को ढोलक मंजीरे के साथ गाते है.
  • इस दिन गेहूं, जौ, चना और चावल के सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाते है।
  • यह व्रत शाम को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद, सत्तू से बने पकवान खाकर ही तोड़ा जाता है।

कजरी तीज कजली तीज पूजा विधि Kajali Teej Kajari Teej Vrat Puja Vidhi

सामग्री : कजरी तीज की पूजा सामग्री के लिए कुमकुम, काजल, मेहंदी, मौली, दीपक, माचिस, चावल, कलश, फल, नीम की एक डाली, कच्चा दूध, पानी, ओढ़नी, सत्तू का लड्डू , घी, तीज व्रत कथा बुक, तीज गीत बुक और कुछ सिक्के आदि की आवश्यकता होती है।

विधि : कजरी तीज कजली तीज की पूजा विधि इस प्रकार हैं :

  • सबसे पहले मिटटी या गोबर से दीवार के सहारे छोटा सा एक तालाब बनाये।
  • अब तालाब के किनारे नीम की एक डाली को लगा दीजिये, और इसके ऊपर लाल रंग की ओढ़नी डाल दीजिये।
  • इसके बाद इसके पास गणेश जी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा विराजमान कीजिये।
  • अब कलश के ऊपरी गोल सिरे में मौली बाँध दीजिये और कलश पर स्वास्तिक बना लीजिये।
  • कलश में कुमकुम, चावल, सत्तू , गुड़ और एक सिक्का चढ़ा दीजिये।
  • इसी तरह गणेश जी और लक्ष्मी जी को भी कुमकुम, चावल, सत्तू, गुड़, सिक्का और फल अर्पित कीजिये।
  • इसी तरह से नीम की टहनी की पूजा कीजिये, और सत्तू तीज माता ( नीम की टहनी ) को अर्पित कीजिये।
  • इसके बाद दूध और पानी तालाब में डालिए।
  • विवाहित महिलाएं तीज माता के पीछे की दीवार पर कुमकुम, मेंहदी और कजल की सात- सात बिंदियाँ लगा दें। (अविवाहित स्त्रियों को 16-16 बिंदियाँ लगनी होती हैं )
  • अब व्रत कथा शुरू करने से पहले दीपक जला लीजिये। व्रत कथा को पूरा करने के बाद महिलाओं को दीपक के प्रकाश में सभी चीजों जैसे- सत्तू, फल, सिक्के, गहने और ओढ़नी का प्रतिबिंब देखना होता है, जो कि तीज माता को चढ़ाया गया था।
  • व्रत कथा खत्म हो जाने के बाद के कजरी के गीत गाइये और माता तीज से प्रार्थना करनी चाहिए । इसके बाद खड़े होकर तीज माता के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।
  • इसके बाद रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद, सत्तू से बने पकवान खाकर ही व्रत को तोड़ा जाता है। सत्तू को आक के पत्ते पर खाना चाहिए।
  • इसके बाद आक के बने हुए पत्ते के दोनों में 7 बार कच्चा दूध और इसके बाद 7 बार पानी पीकर व्रत को खोलना चाहिए।

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यहाँ बहुत सी कथाएं प्रचलित है। अलग- अलग स्थान में इसे अलग तरह से मनाते है इसलिए वहां की कथाएं भी अलग है। यहाँ मैं आपको कुछ प्रचलित कथाएं बता रहा हूँ।

सात बेटों की कहानी

कथा के अनुसार -एक साहूकार था उसके सात बेटे थे। कजरी तीज के दिन उसकी बड़ी बहु नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है। जिसके कारण उसका पति मर जाता है। बाकी सभी बहुये भी इसी प्रकार कजरी तीज के दिन नीम के पेड़ की पूजा करती है और सभी के पति मर जाते हैं। इस तरह उस साहूकार के 6 बेटे मर जाते है। फिर सातवें बेटे की शादी होती है और कजरी तीज के दिन उसकी पत्नी नीम के पेड़ की पूजा न कर, उसकी जगह नीम के पेड़ की टहनी तोड़ कर उसकी पूजा करती है।

जब वह पूजा कर रही होती है तभी साहूकार के सभी 6 बेटे अचानक वापस आ जाते हैं। लेकिन छोटी बहु के आलावा किसी को दिखाई नहीं देते हैं। तब वह अपनी सभी जेठानियों को बुला कर कहती है कि नीम के पेड़ की टहनी की पूजा करो। तब वे सब बोलती है कि वे पूजा कैसे कर सकती है जबकि उनके पति मर चुके थे।तब छोटी बहु बताती है कि उन सब के पति जिंदा है। तब वे प्रसन्न होती है और नीम की टहनी की पूजा अपने पति के साथ मिल कर करती है। इसके बाद से सब जगह बात फ़ैल गई की इस तीज पर नीम के पेड़ की नहीं बल्कि उसकी टहनी की पूजा करनी चाहिए।

सत्तू की कहानी

व्रत में कजरी तीज की इस कथा को ही सुना जाता है।

एक बार एक गरीब ब्राह्मण था। भाद्रपद महीने की तीज पर ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा कि कल मेरा व्रत है। आप मेरे लिए कहीं से भी चने का सत्तू लेकर आओ। रात का समय था। वह एक किराने की दुकान में चोरी करने के इरादे से घुस गया। वहां वह चने की दाल, घी , शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर उसे पीसने लागा, जिससे आवाज हुई और उस दुकान का मालिक उठ गया और उस ब्राह्मण को पकड़ लिया।

साहूकार द्वारा चोरी की वजह पूछे जाने पर उसने कहा कि, मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ। कल मेरी पत्नी का तीज माता का व्रत है। तो उसके लिए सवा किलो सत्तू बना कर ले जा रहा था । साहूकार द्वारा उस ब्राह्मण की तलाशी लेने पर उसके पास सवा किलो सत्तू के आलावा कुछ भी नहीं मिला। जिसके बाद साहूकार ने ब्राह्मण की पत्नी को अपनी धर्म बहन बना लिया और उस ब्राह्मण को 4 तरह के सत्तू, मेहंदी ,श्रृंगार व पूजा का सामान दे दिया। इस तरह भगवान ने उसकी सुनी और पूजा पूरी करवाई।

कहाँ कैसे मनाते है कजरी तीज Kajari Teej kajli Teej festival Celebration

  • कजरी तीज को उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सब जगह अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
  • उत्तर प्रदेश व बिहार में लोग नाव पर चढ़कर कजरी गीत गाते है. वाराणसी व मिर्जापुर में इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जहाँ कजरी विरह गीत की प्रतिद्वंदिता भी होती है।
  • राजस्थान के बूंदी स्थान में इस तीज का बहुत महत्त्व है। यहाँ पारंपरिक नाच होता है। कजरी माता की ऊंट, हाथी की सवारी निकाली जाती है। इस दिन दूर दूर से लोग बूंदी की तीज देखने जाते है।
  • जयपुर में जहाँ हरियाली तीज का पर्व अति प्रसिद्ध हैं, वैसे ही हाडौती में कजली तीज का पर्व विख्यात है। जिसे बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।

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