केदारनाथ की कथा | kedarnath story | Kedarnath Story in Hindi
केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) महादेव को लेना पड़ा एक बैल का रूप, श्री हरि विष्णु ने लिया नर नारायण का अवतार, क्या है कर्ण के जन्म के पीछे का रहस्य | Why Mahadev had to take the form of a bull, Why did Shri Hari Vishnu take the form of Nar Narayan, What is the secret behind the birth of Karna
केदारनाथ मंदिर के बारे में (About Kedarnath Temple)
सबसे पहले मेरे साथ बोलिए। हर हर महादेव।
केदारनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। केदारनाथ मंदिर भारत में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो उत्तराखंड राज्य के गर्हवाल जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3583 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।इसे जीवित ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। मंदिर के लिए पैदल मार्ग का आरंभ गौरीकुंड से होता है, जिसकी दूरी लगभग18 किलोमीटर है।
यह मंदिर जितना पवित्र है उतना ही रहस्यमयी भी है। केदारनाथ मंदिर सिर्फ 6 महीने ही खुलता है और बाकी के 6 महीने यह बंद रहता है। जब ये मंदिर बंद किया जाता है तो इसमें एक दिव्य ज्योति जलायी जाती है। और जब 6 माहिनो के बाद इस मंदिर को खोला जाता है तब एक चमत्कारिक रूप से यह दिव्य ज्योति जलती ही रहती है और मंदिर अंदर से साफ- सुथारा भी रहता है। ऐसा माना जाता है जब मंदिर बंद रहता है तो देवी देवता केदारनाथ जी की पूजा करने आते हैं। यह मंदिर 13 से 17वीं सदी तक बर्फ में 400 साल तक ढाका रहा था।
आइए अब जानते हैं केदारनाथ मंदिर की कथा के बारे में। केदारनाथ मंदिर के बारे में 2 कथाये मुख्य रूप से प्राचलित हैं।
केदारनाथ मंदिर पहली कथा (First Story)
यह बात महाभारत के समय की है। जब महाभारत का युद्ध समाप्त कर पांचो पांडव श्री कृष्ण से अपने द्वारा की गई अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति के उपाय के लिए आते हैं। तब श्री कृष्ण उन्हें महादेव की शरण में जाने को बोलते है। और पांचो पांडव महादेव के दर्शन के लिए काशी नगरी को निकल जाते हैं। परन्तु महादेव पांडवो के इस कृत्य से अत्यधिक क्रोधित होते हैं। इसीलिये पांडवो को आता देख महादेव वहाँ से केदारनाथ चले जाते हैं। पांडव भी महादेव की खोज करते हुए केदारनाथ पाहुच जाते हैं। पर वहाँ पहुंचकर देखते हैं कि वहाँ तो सिर्फ बैल ही बैल है।
भगवान महादेव पांडवो को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसीलिये उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया। पांडव बैल को देखते हैं तो पाते है कि उनमें से एक बैल बाकी बैल से अलग है। इस पर भीम ने अपना विशालकाय रूप धारण किया और दो पर्वत की चोटी पर अपना पैर रख के खड़ा हो गया । तो बाकी सारे बैल उसके पेरो के मध्य में से निकल गए। पर बैल रूपी महादेव वही खड़े रहे। यह देख पांडवो ने महादेव को पहचान लिया। इस पर महादेव धीरे-धीरे धरती में धसने लगे। यह देख भीम ने उनका ऊपर का त्रिकोणात्मक भाग पकड़ लिया। और महादेव को वहाँ से जाने नहीं दिया।
इस पर महादेव उनसे प्रसन्न हो गए और उनको अपने भाइयो के हत्या के पाप से मुक्त कर दिया, और वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए। महादेव के इसी ऊपरी भाग को केदारनाथ में पूजा जाता है। धड़ से ऊपर का भाग जहां प्रकट हुआ उसे पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। जो की नेपाल के काठमांडू जिले में स्थिति है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के एक ही शिव विग्रह का शिरोभाग पशुपतिनाथ है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि चार धाम यात्रा करने के बाद भी पशुपतिनाथ के दर्शन किए बिना यात्रा पूरी नहीं होती।
केदारनाथ धाम के पंचकेदार (Panchkedar)
- जिस ऊपरी भाग को भीम ने पकड़ा था उसे केदारनाथ के नाम से पूजा जाता है। यह पंचकेदार का प्रथम धाम है। यही से पंचकेदार की यात्रा आरम्भ मानी जाती है।
- जहाँ भुजा प्रकट हुई उसे तुंगनाथ के नाम से जाना जाता है। जो की समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। तुंगनाथ को विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है। तुंगनाथ की चोटी 3 धाराओ का स्रोत है जिससे आकाशकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोकटा से 3 किमी दूर स्थित है। यहाँ पार्वती माता ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।
- जहां मुख प्रकट हुआ उसे रुद्रनाथ के नाम से जाना जाता है। जो की समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल के आकार की चोटी यहाँ का आकर्षण बढ़ाती है।
- जहां जटाएँ प्रकट हुई उसे कल्पेश्वर के नाम से जाना जाता है। जो की समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
- जहां नाभि प्रकट हुई उसे मध्यमहेश्वर के नाम से जाना जाता है। जो की समुद्र तल से 3850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
इन पांच स्थानों को मिलाकर पंचकेदार कहा जाता है ।
पढ़ें – नर नारायण, कर्ण तथा दम्भोद्भव कथा
केदारनाथ मंदिर दूसरी कथा (Second Story)
नर नारायण की जंघा से हुआ स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा उर्वशी का जन्म (Urvashi, the most beautiful Apsara of heaven, was born from the thigh of Nar Narayan)
दूसरी कथा के अनुसार नर नारायण भगवान् विष्णु का ही अवतार थे । उनके दो जिस्म थे पर आत्मा एक ही थी । वे बड़े ही तपस्वी थे । नर और नारायण के वर्षो के कठोर तप से प्रसन्न होकर महादेव ने वर मांगने को कहा और नर नारायण ने महादेव को अपने प्रत्यक्ष रूप में यहीं रहने का वर माँगा । जिससे मानव का कल्याण हो सके इस पर महादेव अपने ज्योतिर्लिंग के रूप में वही बस गए जहाँ नर नारायण ने तपस्या की थी । जिसे आज केदारनाथ के रूप में जाना जाता है । माना जाता है की जब नर नारायण तपस्या कर रहे थे । तब उनकी तपस्या से इंद्रदेव का आसान हिल गया था ।
जिसके कारण इंद्रदेव ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सराओ और कामदेव को भेजा । परन्तु वो तप भंग करने में असफल रहे । तप भंग नहीं हुआ तो कामदेव और अप्सराओ ने नर नारायण से अपने किये की क्षमा मांगी । परन्तु नर नारायण उनके इस काम से क्रोधित नहीं हुए, और क्षमा के फलस्वरूप उन्होंने अपनी जंघा से स्वर्ग के सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी को प्रकट किया । और उसे इंद्रदेव को सोप दिया । और इंद्रदेव उसे अपने साथ स्वर्ग ले गए । इस प्रकार उर्वशी ने स्वर्ग लोक में नर नारायण की कथा इंद्रदेव और बाकी सभी देवताओं को सुनाई ।