सावन मास कथा 2023,बेलपत्र एवं श्रावण कांवड़ यात्रा | Sawan Month Katha in Hindi, Bel Patra, Sawan Kanwar Yatra (Date, Festivals)

श्रावण महिना (मास) 2023, कब से लग रहा है, सावन मास कथा एवं महत्व, त्यौहार, बेलपत्र का महत्व, कांवड़ यात्रा का उल्लेख | Sawan Month Katha in Hindi, Bel Patra, Sawan Month Kanwar Yatra (Date, Festivals)

श्रावण मास का यह महीना शिवजी का अत्यंत प्रिय महीना हैं। पूरे माह धार्मिक रीति-रिवाजों का ताता लगा रहता हैं। श्रावण के इस महीने में कई विशेष त्यौहार मनाये जाते हैं। वर्षा ऋतू से ही चार महीने के त्यौहार शुरू हो जाते हैं। उसी प्रकार हिन्दू समाज में सावन का बहुत अधिक महत्व हैं। जिसे कई विधियों एवं परम्पराओं के रूप में देखा व पूजा जाता हैं। तीनों मुख्य ऋतुयें 4-4 माह के लिए आती हैं। सभी का होना हमारे देश की जलवायु पर विशेष प्रभाव डालता हैं। भारत देश कृषि प्रधान होने के कारण यहाँ वर्षा ऋतू का महत्व अधिक होता हैं, और उसमें सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं।

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श्रावण मास 2023 कब से लग रहा है | Shravan Month, Sawan 2023

इस साल यानि 2023 में सावन का महीना 4 जुलाई से 31 अगस्त 2023 तक चलेगा। इस बार सावन 59 दिनों का है, क्योंकि इस दौरान अधिकमास भी रहेगा। सावन में अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई 2023 से होगी और 16 अगस्त 2023 को इसकी समाप्ति होगी।

सावन सोमवार 2023 में कब- कब है | Sawan Somvar Vrat Start Date 2023

सावन का पहला सोमवार10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार24 जुलाई
सावन का चौथा सोमवार31 जुलाई
सावन का पाचवा सोमवार7 अगस्त
सावन का छटा सोमवार14 अगस्त
सावन का सातवा सोमवार21 अगस्त
सावन का आठवा सोमवार28 अगस्त

सावन महीना महत्त्व | Shravan, Sawan Month Mahatva

श्रावण यह हिंदी कैलेंडर में पांचवे स्थान पर आता हैं। यह वर्षा ऋतू में प्रारंभ होता हैं। शिव जो को इस माह में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। पुरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं। सावन में शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान, कांवड़ यात्रा एवं शिव अभिषेक का महत्व हैं। कई महिलायें पूरा सावन महीने में सोमवार को सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं। कुवारी कन्या अच्छे वर के लिए इस माह में उपवास एवं शिवजी की पूजा करती हैं। विवाहित स्त्री पति के लिए मंगल कामना करती हैं।

श्रावण / सावन माह से जुडी धार्मिक कहानियाँ | Sawan Month Katha

कहा जाता है कि श्रावण भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं। मान्यता है कि दक्ष पुत्री माता सति ने अपने जीवन को त्याग कर शिवजी को पुनः प्राप्त करने के लिए 107 बार जन्म लिया। 107 बार जन्म लेने के बाद भी वह शिवजी को पा न सकी। 108 वीं बार हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लेने के बाद उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे 100 वर्षों तक शिवजी की कठोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्रवण मास में ही उन्हें दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूरी की। इसी दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।

अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान् शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं। यही कारण है कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं। यही मान्यता हैं कि श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहाँ अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं.

धार्मिक मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था , जिस कारण उन्हें नील कंठ नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने श्रृष्टि को इस विष से बचाया, और सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण श्रवण मास में शिव अभिषेक में जल का विशेष महत्त्व है।

वर्षा ऋतू के इन चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के संचालन की बागडोर महादेव के हाथों में सौंप जाते हैं। अपने भक्तों से जल्दी ही प्रसन्न होने के कारण महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। अतः इस चातुर्मास में महादेव को प्रसन्न करने के लिए ही सभी लोग कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास, व्रत आदि करते हैं ।

बेलपत्र का महत्व | Bel Patra Ka Mahatva

शिव उपासना में बेलपत्र का विशेष महत्व है। एक कथा के अनुसार, एक बार एक डाकू राहगीरों को लूटने के लिए बेल के पेड़ पर बैठ कर, अपने शिकार के इंतजार में, उस पेड़ के पत्तों को तोड़- तोड़ कर नीचे फेकता रहता है। जहाँ शिव लिंग स्थापित होता है। डाकू के द्वारा फेका गया पत्ता शिव लिंग पर गिरता है और उसके करुण भाव के कारण उसमें एक सच्ची श्रद्धा का संचार होता है। जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ उसे दर्शन देते हैं और उसकी पीढ़ा को समाप्त कर उसे सही राह पर लाते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार देवी लक्ष्मी द्वारा कई वर्षों की तपस्या के बाद महादेव को अपने अंगों को चढ़ाने से प्रसन्न होकर महादेव ने देवी लक्ष्मी के इन्हीं अंगों को बेलपत्र के रूप में प्रकट किया और वरदान दिया कि जो भी इस बेलपत्र को मुझ पर श्रद्धा भाव से अर्पण करेगा उसे तुम्हारे ही सामान कई वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होगा।

भुजरिया का महत्व | Shravan Bhujariya

शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा नाग पंचमी के दिन से भुजरिया बोई जाती हैं। इसमें घर में टोकनी में मिट्टी डालकर कर गेहूँ बोते हैं। इस दिन से पूर्णिमा के दिन तक इसकी पूजा की जाती है। सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलिया पर्व भी कहते हैं। रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन इस भुजरियाँ को सभी को बाँटा जाता है। आसपास के घरों एवं रिश्तेदारों को भुजरिया दी जाती है।

श्रावण/ सावन सोमवार व्रत का महत्व | Sawan Somvar Mahatva

सोमवार का स्वामी भगवान शिव को माना जाता हैं। पुरे वर्ष में सोमवार को शिव भक्ति के लिए उत्तम माना जाता हैं। अत: शिव प्रिय होने के कारण श्रावण के सोमवार का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं। श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं। जिनमे एक्श्ना अथवा पूर्ण व्रत रखा जाता हैं। एक्श्ना में संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता हैं। शिव जी की पूजा प्रदोषकाल में होती है। कई जगहों पर श्रावण सोमवार के दिन शाला का अर्धावकाश होता हैं।

कांवड़ यात्रा का उल्लेख | Sawan Kanwar Yatra Mahtva

श्रावण में कांवड़ यात्रा का बहुत अधिक महत्व है। इसमें लोग भगवा वस्त्र धारण करके पवित्र नदियों के जल ( विशेषकर गंगा नदी )को एक कांवर में बाँधकर पैदल चलकर शिवलिंग पर उस जल को चढ़ाते हैं। कांवर एक बाँस का बना होता हैं। जिसमे दोनों तरफ छोटी सी मटकी होती है। जिसमे जल भरा होता है और उस बाँस को फूलों एवं घुन्घुरों से सजाया जाता है। साथ ही “बोल बम” का नारा लिए कई कांवर यात्री श्रृद्धा पूर्वक पद-यात्रा कर पवित्र जल को शिवलिंग पर अर्पण करते हैं। श्रावण का पुराणों में बहुत महत्व है। कहते हैं रावण ने सबसे पहले कांवर यात्रा की थी एवं भगवान राम ने भी काँवडी के रूप में शिवलिंग पर जल चढ़ाया था।

जो लोग दूर कहीं से कांवड़ नहीं ला सकते। वो अपने घर से दो लोटा जल भर लें। अपने दोनों हाथों में एक-एक लोटा ( भरा हुआ लोटा ) को पकड़कर पास के ही शिवमंदिर में पैदल जाकर भी जल चढ़ा सकते हैं।

आखिर क्या है शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका | Shivling Par Jal Chadane Ka Sahi Tarika

हम में से ज्यादातर लोग शिवलिंग पर जल तो चढ़ाते हैं, पर शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है, ये किसी को नहीं पता। तो चलिए जानते हैं शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका आखिर है क्या ?

  • सबसे पहले अपने उल्टे हाथ ( बाएं हाथ ) की तरफ जल चढ़ाया जाता है। जो कि शिवजी के छोटे पुत्र प्रथमपूज्य भगवान् गणेश का स्थान होता है।
  • इसके बाद अपने सीधे हाथ ( दाएं हाथ ) की तरफ जल चढ़ाया जाता है। जो कि शिवजी के बड़े पुत्र भगवान् कार्तिकेय का स्थान होता है।
  • इसके बाद शिवलिंग के बीच में एक मोटी लकीर बनी हुई होती है। वहाँ जल चढ़ाया जाता है। जो कि शिवजी की पुत्री अशोकसुन्दरी का स्थान होता है।
  • इसके बाद जहाँ शिवलिंग रखा हुआ होता है। उस पर जल चढ़ाना चाहिए। उन्हें पार्वती के हस्तकमल माना जाता है। ( शिवलिंग का गोल चक्कर )
  • इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद ऊपर जो जलाधारी होती है। उस पर जल चढ़ाना चाहिए। जो की शंकर भगवान् की 5 बेटियों ( जया, विषहर, शामिलबारी, देव और दोतलि ) का स्थान होता है।
  • इसके बाद मंदिर में शिवलिंग के आसपास रखी अन्य मूर्तियों को जल चढ़ाया जाता है, जो कि शिवजी के परिवार की ही मूर्तियाँ होती हैं।
  • इसके बाद नंदीश्वर पर जल चढ़ाये। इसके बाद मंदिर से बहार निकलते हुए चौखट पर 2 बूँद पानी चढ़ाकर फिर मंदिर से बहार निकलना चाहिए।

अगर आपको शिवलिंग में सभी का स्थान नहीं समझ में आया हो तो नीचे दी गयी फोटो को ध्यान से देख लें।

Shivling Par Jal Chadane Ka Sahi Tarika

शिव पूजन का विवरण | Sawan Month Shiv poojan Details

श्रावण के महीने में शिव जी के लिए व्रत रखे जाते हैं। जिनमे सोमवार का विशेष महत्व है। सर्वप्रथम प्रथमपूज्य गणेश जी की पूजा की जाती है। उसके बाद महादेव की पूजा की जाती है।

शिव पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व है। जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता है। प्रति दिन रुद्राभिषेक करने का नियम पालन किया जाता है। रुद्राभिषेक करने की विधि इस प्रकार है।

  • सर्वप्रथम जल से शिवलिंग का स्नान कराया जाता है। फिर क्रमशः दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शक्कर इन पांच अमृत ( जिन्हें मिलाकर पंचामृत कहा जाता है ) के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराया जाता है। पुनः जल से स्नान कराकर उन्हें शुद्ध किया जाता है।
  • इसके बाद शिवलिंग पर चन्दन का लेप लगाया जाता है। तत्पश्चात जनेऊ पहनाया जाता है।
  • शिव जी पर कुमकुम एवं सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता। उन्हें अबीर अर्पण किया जाता है।
  • बेलपत्र, अकाव के फूल, धतूरे का फूल एवं फल चढ़ाया जाता है। शिवलिंग पर शमी पत्र भी चढ़ाया जाता है।
  • इस पुरे कार्य को ॐ नम: शिवाय या श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के जाप के साथ किया जाता है।
  • इसके पश्चात् माता गौरी का पूजन किया जाता है।

श्रावण माह की एकदशी | Sawan Month Ekadashi Mahatva

श्रावण के महीने में एकादशी का भी महत्व होता हैं इस माह में दो एकादशी होती हैं जिसमें –

  • पुत्रदा एकादशी :- यह एकदशी शुक्ल पक्ष में आती है।
  • कामिका एकादशी :- यह कृष्ण पक्ष एकदशी कही जाती है।

श्रावण के विशेष त्यौहार | Festival in Shravan/ Sawan Month Festival

  • सावन सोमवार :- सावन के महीने में जितने भी सोमवार पड़ते हैं। वो सावन सोमवार होते हैं। जिसमें लोग भगवान् शिव की पूजा करते हैं, और दिन में एक समय खाना खा कर पूरा दिन उपवास रहते हैं।
  • हरियाली तीज :- श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज का यह त्यौहार मनाया जाता है। इसमें नव विवाहिता के मायके से श्रृंगार का सामान व हरे रंग के वस्त्र आदि आते हैं। कुंवारी कन्या वर की कामना हेतु यह व्रत करती हैं। इसे निराहार किया जाता है। माता गौरी को सोलह श्रृंगार चढ़ाया जाता है। हर्ष के साथ संगठित होकर महिलायें एवं कन्या यह त्यौहार मनाती हैं।
  • नाग पंचमी :- यह शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इसमें नाग देवता की पूजा की जाती है।
  • रक्षाबंधन :- श्रावण की पूर्णिमा पर राखी का त्यौहार मनाया जाता है। जिसे भाई-बहन का विशेष त्यौहार माना जाता है।
  • श्रावणी मेला :- इसे झारखण्ड तरफ मनाया जाता है। इसमें पवित्र नदियों के स्नान का महत्व है।
  • कजरी तीज :- शुक्ल पक्ष की नवमी में मनाया जाता है। इसे खासतौर पर किसान एवं महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेषकर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है।

श्रावण माह के अन्य रिवाज | Shravan Month Customs

  • ऐसे कई त्यौहार मान्यतानुसार श्रावण माह में मनाये जाते हैं। सबका अपना अलग महत्व होता है।
  • कहते हैं श्रावण की पूजा हमेशा परिवार जनों के साथ मिलकर की जानी चाहिये, इससे आपसी मन मुटाव कम होते हैं, और एकता बनी रहती हैं।
  • श्रावण में हिन्दू धर्म में पूजा का बहुत महत्व है। साथ ही श्रावण में मांसाहार खाना वर्जित माना गया है। श्रावण में कई लोग प्याज, लहसुन भी नहीं खाते। कई पुरुष श्रावण में दाड़ी एवं बाल कटवाना गलत मानते हैं।
  • श्रावण के महीने में शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में रथयात्रा निकलती हैं। खासतौर पर यह यात्रा प्रति श्रावणी सोमवार को निकलती है। आखरी सोमवार शिव जी की बारात निकाली जाती हैं, जिसमे नंदी भी लाये जाते हैं।
  • श्रावण के महीने में सुंदर कांड, रामायण, भागवत कथा का वाचन एवं श्रवण किया जाता है। इसे पुण्य का कार्य समझा जाता है। इसके अलावा घरो में भजन, शिव अभिषेक एवं सत्यनारायण की कथा भी की जाती है। पूरा महीने दान का भी विशेष महत्व होता है।
  • इस तरह से हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा श्रावण माह विशेषरूप से त्योहारों का माह होता है, जिसे लोग बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं।

FAQ

Q. श्रावण मास कब से लग रहा है ?

Ans. 10 जुलाई से

Q. श्रावण मास की अमावस्या कब है ?

Ans. 8 अगस्त को

Q. श्रावण मास में कौन – कौन से त्यौहार आते हैं ?

Ans. सावन सोमवार, हरियाली तीज, नाग पंचमी, कजली तीज, रक्षाबंधन आदि।

Q. शिव जी को क्यों प्रिय है सावन का महीना ?

Ans. भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती की 100 वर्षों की कठोर तपस्या से प्रसंन्न होकर इसी श्रावण मास में भगवान् शिव ने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसलिए श्रावण मास भगवान् शिव का अति प्रिय महिना होने के कारण ही भगवान् शिव की पूजा इस मास में की जाती है।

Q. श्रावण महीने में सोमवार का क्या महत्व है ?

Ans. सोमवार का दिन भगवान् शिव का दिन माना जाता है और सावन महिना भगवान् शिव का प्रिय महिना होने के कारण लोग सावन के सोमवार में विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं।

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