सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha in Hindi

सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha in Hindi

सावन सोमवार की कथा के अनुसार, अमरपुर नाम के नगर में एक साहूकार रहता था। जो कि भगवान शिव का अनन्‍य भक्‍त था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। उसके पास धन-धान्‍य किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन वह निःसंतान था। इसीलिए वह संतान प्राप्ति की कामना लिए प्रतिदिन शिवजी के मंदिर जाकर दीपक जलाता और पूजा अर्चना करता और विधिवत सोमवार का व्रत करता। उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि प्रभु ! यह साहूकार आपका सच्चा भक्‍त है। कितने समय से यह आपकी पूजा करता आया है। तो आपको इसे उनकी भक्ति का फल अवश्‍य देना चाहिए।

शिवजी बोले कि हे पार्वती इस संसार में प्रत्येक प्राणी को आपका कर्मफल भोगना ही पड़ता है। यह पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी भक्ति करता है जो कि इसके भाग्य में है ही नहीं। माता पार्वती कहती हैं कि हे ईश्वर ! आप तो किसी का भी भाग्य बदल सकते हैं और फिर यह तो आपका सच्चा भक्त है। कृपा करके इसे पुत्र का वरदान दे दीजिए। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती साहूकार के भाग्‍य में पुत्र का योग नहीं है। किन्तु तुम्हारे आग्रह पर मैं इसे पुत्र-प्राप्ति का वर दे देता हूँ। वह केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।

उसी रात भगवान् शिव ने उस साहूकार को उसके सपने में दर्शन दिए और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हुए, उसके 12 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई। इसलिए उसे न तो खुशी हुई और न ही दु:ख। लेकिन इससे उसने अपनी भक्ति कम न होने दी। वह पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा और विधिवत सोमवार का व्रत भी करता रहा।

कुछ महीनों के बाद उसके घर अति-सुन्दर पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र के जन्म से साहूकार के परिवार में खुशिया भर गयीं। लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहा और उसने बालक की 12 वर्ष की आयु का जिक्र किसी से भी नहीं किया। विद्वान ब्राह्मणों ने उसका नाम अमर रखा।

जब बालक 11 वर्ष की आयु हो गई तो साहूकार ने अमर को शिक्षा के लिए वाराणसी भेजने का निश्चय किया। इसके बाद उसने बालक के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि इसे वाराणसी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्‍ते में जिस भी स्‍थान पर रुकना वहां यज्ञ करना और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना।

एक दिन अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे जहाँ की राजकुमारी के विवाह के लिए उस नगर को सजाया जा रहा था। लेकिन जिससे उसका विवाह होना था वह एक आंख से काना था। तो वर के पिता ने जब अमर को देखा तो उनके मन में आया कि क्‍यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर शादी के सारे कार्य संपन्‍न करा लिये जाएं और बाद में इन्हें धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। तो उन्‍होंने इस बारे में दीपचंद से बात की धन के लालच में वह इसके लिए राजी हो गया और अमर को दूल्हा बनाकर मंडप में बैठा दिया। और राजकुमारी चन्द्रिका का विवाह अमर से करा दिया।

अमर यह बात राजकुमारी चन्द्रिका से न छिपा सका और जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुंदरी पर लिख दिया कि आपका विवाह तो मेरे साथ हुआ है और मैं तो वाराणसी शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूँ। लेकिन अब आपको जिस राजकुमार की पत्नी बनना पड़ेगा, वह तो एक आंख से काना है। इसके बाद वह अपने मामा के साथ वाराणसी के लिए निकल गया। उधर जब राजकुमार ने अपनी चुनरी पर यह लिखा हुआ देखा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। तो राजा ने भी अपनी पुत्री को बारात के साथ विदा नहीं किया और उसे महल में ही रख लिया।

उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में अपनी शिक्षा आरम्भ की। जब अमर की शिक्षा पूरी हो गयी तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और अन्न,वस्त्र का दान किया। इस समय उसकी आयु 12 वर्ष पूरी हो गयी थी। रत को जब अमर सोने गया तो वरदान के अनुसार उसके प्राण निकल गए। सूर्योदय के पश्चात जब मामा ने अंदर जाकर देखा और अमर को मृत पाया तो वह रोने-पीटने लगा। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है?

मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे हैं। आप इस व्यक्ति का कष्ट दूर करें। इस पर भोलेनाथ ने कहा कि यह उसी साहूकार का पुत्र है जिसे मेने 12 वर्ष की अल्पायु प्रदान की थी और अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है।

तब माता पार्वती कहती हैं कि हे स्‍वामी इसे जीवित कर दें अन्‍यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण भी निकल जाएंगे। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका। लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया। लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जीवित हो उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्‍वर को धन्‍यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर लौटे। रास्‍ते में वही नगर पड़ा और उन्होंने वहाँ भी यज्ञ किया। राजा ने पास से गुजरते हुए उन दोनों को यज्ञ करते हुए देखा तो उन्हें पहचान लिया और उन्हें अपने महल में ले गए।

तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्‍य के साथ विदा किया। उधर साहूकार और उसकी पत्‍नी ने प्रण कर रखा था कि वह तब तक अन्न ग्रहण करेंगे, जब तक कि उनका पुत्र सकुशल वापस लोट कर नहीं आ जाता। लेकिन लड़के के मामा दीपचंद ने एक सैनिक को अपने देरी से आने की सूचना देकर पहले ही साहूकार के पास भेज दिया था। अपने पुत्र के आगमन की सूचना पते ही साहूकार की ख़ुशी का ठिकाना न रहा और उन्होंने अपने बेटे और बहू का स्‍वागत किया।

उसी रात साहूकार को स्‍वप्‍न में शिवजी ने दर्शन दिए और कहा कि तुम्‍हारे नित्य पूजन और सोमवार व्रत से मैं अत्यंत ही प्रसन्‍न हूँ । जिसके कारण मेने तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।

तो इस तरह विधिपूर्वक सोमवार व्रत करने से साहूकार के घर में खुशियाँ आ गयीं उसी प्रकार जो भी व्‍यक्ति सोमवार का व्रत विधिपूर्वक करते हैं तथा इस कथा को पढ़ते और सुनते हैं। उनके समस्‍त दु:ख दूर हो जाते हैं और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। ज्यादातर सोमवार के व्रत श्रावण मास में ही किये जाते हैं।

सावन सोमवार 2023 में कब- कब है | Sawan Somvar Vrat Start Date 2023

सावन का पहला सोमवार10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार24 जुलाई
सावन का चौथा सोमवार31 जुलाई
सावन का पाचवा सोमवार7 अगस्त
सावन का छटा सोमवार14 अगस्त
सावन का सातवा सोमवार21 अगस्त
सावन का आठवा सोमवार28 अगस्त
सावन सोमवार और सोलह सोमवार दोनों की कथाएं अलग-अलग कही व सुनी जाती हैं।

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