द्वारकाधीश धाम कथा | Dwarkadhish Temple Story

द्वारकाधीश की कहानी | द्वारकाधीश की कथा | द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास, निर्माण तथा धार्मिक महत्व | एक श्राप और द्वारका का अंत | Dwarkadhish Temple History in Hindi | Dwarkadhish ki Photo | Dwarkadhish Story in Hindi | dwarkadhish mandir history in hindi | Dwarkadhish Temple Construction and Religious Significance of Dwarkadhish Temple | A Curse and the End of Dwarka

Dwarkadhish Temple

द्वारकाधीश मंदिर भगवान श्री हरी विष्णु के आठवे अवतार भगवान श्री कृष्णा को समर्पित है। यह मंदिर भारत के गुजरात के गोमती नदी के तट पर द्वारका में स्थित है। 5 मंजिला इमारत और 72 स्तंभों वाला यह मंदिर, जगत मंदिर या निज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर लगभग 2200 साल पुराना बताया जाता है। 15 वीं -16 वीं शताब्दी में मंदिर का विस्तार किया गया। बद्रीनाथ और रामेश्वरम के बाद द्वारकाधीश तीर्थ की यात्रा की जाती है ।

Dwarkadhish ki Photo
Dwarkadhish ki Photo

Table of Contents

द्वारकाधीश मंदिर निर्माण | Dwarkadhish Temple Construction

द्वारकाधीश के मूल मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के वंशज और उनके परपोते वज्रभनाथ ने करवाया था । जबकि द्वारका पुरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने विश्वकर्माजी से करवाया था। आज भी कई रिसर्च से समुद्र के गर्भ में द्वारका नगरी के अनेक अवशेष मिले हैं जिन पर लगातार शोध जारी है। द्वारकाधीश मंदिर भारत के गुजरात राज्य के द्वारका शहर में स्थित है, यह शहर गुजरात के जिले जामनगर में पड़ता है, जो भारत के पश्चिम तट पर अरब सागर के किनारे स्थित है।

यह मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले चार धाम तीर्थ का हिस्सा है, अन्य तीन में रामेश्वरम , बद्रीनाथ और जगन्नाथ पुरी शामिल हैं । 8 वीं शताब्दी के हिंदू धर्मशास्त्री और दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का दौरा किया था । आज भी मंदिर के भीतर स्तिथ एक स्मारक उनकी यात्रा को समर्पित है।

द्वारकाधीश मंदिर का धार्मिक महत्व | Religious Significance of Dwarkadhish Temple

मंदिर की पूरी ऊंचाई लगभग 157 फीट है। इस मंदिर के शिखर पर एक झंडा लगा हुआ है मंदिर के ऊपर का ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, जो कि यह दर्शाता है कि जब तक सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी पर मौजूद रहेंगे तब तक श्री कृष्ण रहेंगे। ध्वज को दिन में 5 बार बदला जाता है, इस ध्वज की लंबाई 52 गज होती है, हर बार समान प्रतीक के साथ, अलग रंग का ध्वज फहराया जाता है। इस ध्वज को कई मील दूर से भी देखा जा सकता है।

मंदिर का शिखर 78.3 मीटर ऊंचा है। मंदिर का निर्माण चूना-पत्थर से हुआ है, जो अभी भी प्राचीन स्थिति में ही है। मंदिर में क्षेत्र पर शासन करने वाले राजवंशों के उत्तराधिकारियों द्वारा की गई जटिल मूर्तिकला का विस्तार दिखाया गया है।

द्वारकाधीश मंदिर के 52 गज के ध्वज का रहस्य | The secret of the 52 yards flag of Dwarkadhish temple

द्वारकाधीश मंदिर के 52 गज के ध्वज के पीछे अनेक किवदंतिया प्रचलित हैं जैसे कि

  • कुछ लोग बोलते हैं कि द्वारका पर 56 प्रकार के यादवों ने राज किया था । जिनमें से मुख्य 4 (बलरामजी, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध) के मंदिर तो अभी भी बने हुए हैं शेष बचे 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में यह ध्वज 52 गज का है ।
  • एक और मान्यता अनुसार 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं , सूर्य, चन्द्रमा और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं । इसीलिए द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ही ध्वज फहराया जाता है । इस ध्वज की खासियत यह है कि, हवा की दिशा चाहे जो भी हो, यह ध्वज हमेशा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर ही लहराता रहता है।
  • एक और मान्यता अनुसार द्वारका में एक समय पर 52 द्वार हुआ करते थे। यह ध्वज उसी का प्रतीक है। मंदिर के इस ध्वज को एक खास दर्जी ही सिलता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है, तो उस तरफ देखने की भी मनाही होती है।

द्वारकाधीश मंदिर का प्रवेश द्वार | Entrance of Dwarkadhish Temple

Entrance of Dwarkadhish Temple

मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर में स्तिथ है, जिसे “मोक्ष द्वार” भी कहा जाता है। यह प्रवेश द्वार मुख्य बाजार की तरफ खुलता है। दक्षिणी प्रवेश द्वार को “स्वर्ग द्वार” कहा जाता है। इस द्वार के बाहर 56 सीढ़ियाँ हैं, जो गोमती नदी की ओर जाती हैं। मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक और शाम 5.00 बजे से रात 9.30 बजे तक खुला रहता है। इस मंदिर की पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का एक भव्य मंदिर भी स्थित है और दक्षिण में जगद्गुरु शंकराचार्य का शारदा मठ है।

नागेश्वर महादेव | Nageshwar Mahadev

Nageshwar Mahadev

इसके आलावा द्वारका के पवित्र स्थान पर ही द्वारका की सीमा में स्तिथ प्राचीन शिव मंदिर नागेश्वर महादेव विराजमान हैं। जो कि 12 ज्योतिरलिंगों में से एक हैं। नागेश्वर का अर्थ है भगवान शिव द्वारा दोषों से मुक्ति। रुद्र संहिता में शिव को ‘दारुकावन नागेशम’ के रूप में बताया गया है।

द्वारकाधीश मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा | Mythology related to Dwarkadhish temple

एक किंवदंती के अनुसार, द्वारका नगरी का निर्माण श्रीकृष्ण के आग्रह पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा (देवताओं के शिल्पकार एवं वास्तुकार) गोमती नदी के तट पर समुद्री भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था। कहते हैं कि विश्वकर्माजी द्वारा केवल एक रात्रि में ही इस भव्य नगरी का निर्माण पूरा हो गया था। उस समय यह द्वारका नगरी स्वर्ण द्वारका के नाम से जानी जाती थी क्योंकि उस काल के दौरान अपनी धन, वैभव और समृद्धि के कारण यहां स्वर्ण का दरवाजा लगा हुआ था। एक बार दुर्वासा ऋषि श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणीजी से मिलने गए उनसे मिलने के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण से उनके निवास स्थान, द्वारका नगरी पर चलने का अनुरोध किया।

द्वारका नगरी की तरफ कुछ दूर जाने के बाद ही रुक्मिणी देवी थक गईं और उन्होंने श्रीकृष्ण से पानी पीने का अनुरोध किया। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी की प्यास बुझाने के लिए एक पौराणिक छेद से गंगा नदी के धारा को प्रवाहित कर दिया। इस घटना से महृषि दुर्वासा को ऐसा लगा कि रुक्मिणी देवी उन्हें द्वारका जाने से रोकने का प्रयास कर रहीं हैं, जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने रुक्मिणीजी को उसी स्थान पर रहने का श्राप दे दिया। माना जाता है कि जिस स्थान पर रुक्मणी देवी श्राप के समय खड़ी हुई थी, उसी स्थान पर द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण किया गया।

माता गांधारी का श्राप और द्वारका नगरी का अंत | The curse of Mata Gandhari and the end of Dwarka city

महाभारत के युद्ध में पांडवों का समर्थन करने के कारण, कौरवों की माता गांधारी ने युद्ध के पश्चात भगवान श्री कृष्ण को यह श्राप दिया था कि जिस तरह श्रीकृष्ण ने सभी भाइयों को आपस में लड़वाकर उनके कुल का नाश किया है, ठीक उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण का यदुवंश भी आपस में लड़कर समाप्त हो जायेगा और श्रीकृष्ण को चाहकर भी यह विनाश रोक नहीं पाएंगे और उनको यह विनाश अपनी आँखों से देखना पड़ेगा।

आगे श्राप देते हुए माता गांधारी ने कहा कि श्रीकृष्ण को अपने निवास स्थान से दूर कही किसी घने जंगल में मृत्यु आएगी उनकी मृत्यु के समय उनका कोई भी अपना उनके साथ नहीं होगा तत्पश्चात द्वारका नगरी भी समुद्र के गर्भ में समां जाएगी। महाभारत युद्ध के ठीक 36 वर्षो के बाद माता गांधारी का श्राप फलित हुआ और यदुकुल की समाप्ति के पश्चात द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।

द्वारका द्वापर युग में भगवान कृष्ण की राजधानी थी, और आज कलयुग में यह स्थान भक्तों के लिए महातीर्थ माना जाता है। गोमती नदी के तट पर स्थापित यह मंदिर बहुत ही सुंदर व अद्भुत है यही नहीं इस स्थान पर गोमती नदी अरब सागर से मिलती है। द्वारकाधीश उपमहाद्वीप पर भगवान विष्णु का 108वां दिव्य मंदिर है, दिव्य प्रधान की महिमा पवित्र ग्रंथों में भी मानी जाती है। द्वारकाधीश मंदिर हिंदूओं के पवित्र धाम, चार धाम में से एक तीर्थ स्थल माना जाता है।

द्वारकाधीश की कहानी | Story of Dwarkadhish

एक बार की बात है भगवान द्वारकाधीश के भक्त बोदाना, डाकोर से प्रतिदिन मंदिर पूजा अर्चना करने आते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान द्वारकाधीश भी उनके साथ उनके पीछे-पीछे डाकोर चले गए । मंदिर के पुजारी को जब यह बात पता चली तो, बोदाना पर क्रोधित होते हुए मूर्ति को वापस पाने के लिए उसका पीछा किया था। मगर बोदाना ने मूर्ति के बदले पुजारियों को सोना देने के लिए राजी कर लिया था।

मगर बोदाना बहुत धनवान नहीं था इसीलिए भगवान द्वारकाधीश ने एक चमत्कार दिखाया और आश्चर्यजनक रूप से मूर्ति का वजन केवल एक नाक की नथ के बराबर कर लिया। उसके अलावा भगवान ने पुजारियों को आश्वस्त किया कि उन्हें एक दिन मूर्ति की प्रतिकृति मिल जाएगी। और इस तरह द्वारकाधीश श्रीकृष्ण, डाकोर में रणछोर के नाम से विराजमान हो गए ।

FAQ

Q. द्वारकाधीश मंदिर में कौनसे भगवान की पूजा की जाती है ?

Ans. श्री कृष्ण भगवान की ।

Q. द्वारकाधीश मंदिर कितने साल पुराना है?

Ans. पुरातात्व विभाग द्वारा बताया जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर लगभग 2,200-2500 साल पुराना है।

Q. श्री कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका क्यों गए?

Ans. जरासंध से यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोडऩे का निर्णय लिया था।

Q. द्वारका का पुराना नाम क्या था?

Ans. द्वारका का प्राचीन नाम कुशस्थली था।

Q. द्वारकाधीश मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है?

Ans. यह मंदिर भारत के गुजरात के जामनगर ज़िले में गोमती नदी के तट पर द्वारका शहर में स्थित है।

Q. द्वारकापुरी और द्वारकाधीश मंदिर किसने बनवाया ?

Ans. द्वारकाधीश के मूल मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के वंशज और उनके परपोते वज्रभनाथ ने करवाया था । जबकि द्वारकापुरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने विश्वकर्माजी से करवाया था।

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