यमुनोत्री धाम का इतिहास | यमुनोत्री का उद्गम स्थल | देवी यमुना और शनिदेव की कथा | असित मुनि | बन्दरपूँछ और कुंड | Yamunotri Temple History in Hindi | Origin Of Yamunotri Temple | Char Dham Yatra First stop | Asit Muni | Bandarpunch | Surya Kund | Gauri Kund | Divya Shilakhand Jyoti Shila
यमुनोत्री का उद्गम स्थल | Origin Of Yamunotri Temple
सूर्यतनया अर्थात् सूर्य पुत्री यमुना। पुराणों में यमुना को सूर्य-पुत्री कहा गया है। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी यमुना भी हैं। यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है। यमनोत्री मंदिर के कपाट हर साल अक्षय-तृतीया के दिन खुलते हैं, और दिवाली के दूसरे दिन बंद कर दिया जाते हैं।
यमुनोत्री मंदिर ही पवित्र यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुना नदी का वास्तविक स्रोत कलिंद पर्वत के निचे एक जमे हुए ग्लेशियर से है जिसे चंपासर ग्लेशियर कहा जाता है, जिसके कारण यमुना को कालिंदी भी कहा जाता है, यह 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्तिथ है। यहाँ से एक कुंड दिखाई देता है, जिसे सप्तऋषि कुंड के नाम से जाना जाता है। मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में माँ यमुना काले रंग की संगमरमर की मूर्ति के रूप में विराजमान हैं |
मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पुरे विधि-विधान के साथ की जाती है | यमुनोत्री धाम में पिंड-दान का भी विशेष महत्व है | श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड-दान करने आते हैं | मान्यता है कि एक बार भैया दौज के अवसर पर देवी यमुना ने अपने भाई यम से वरदान माँगा कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करे उसकी अकाल मृत्यु न हो व उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाये | इस मंदिर में यम की पूजा का भी विधान है | पुराणों में उल्लेख है कि पवित्र यमुना नदी में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यमुनोत्री मंदिर का इतिहास | History of Yamunotri Temple
वर्तमान में जो मंदिर है वो जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। प्राचीन मंदिर भूकम्प से पहले ही विध्वंस हो चुका था, जिसका पुर्ननिर्माण महारानी द्वारा कराया गया। यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है |
यह मंदिर छोटा चार धाम यात्रा का पहला धाम है अर्थात यात्रा की शुरूआत इसी स्थान से होती है चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव होने के कारण जब चार धाम यात्रा शुरू होती है तब यहाँ पर काफी मात्रा में यात्रिओं की भीड़ होती है । यमुनोत्री धाम मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था | मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है।
देवी यमुना और शनिदेव की कथा | Story of Goddess Yamuna and Shani Dev
कहते है कि यमुना ने अपने भाई को देवी छाया के श्राप से मुक्त कराने के लिए घोरतपस्या की ,और उन्हें श्राप से मुक्त करा दिया । यमुनाजी की तपस्या को देखकर यम बहुत खुश हुए और उन्होंने यमुना देवी को वर मांगने को कहा, तो यमुना देवी ने अपने भाई यम से वरदान में माँगा कि यमुना नदी कभी भी दूषित न हो, ताकि धरती पर किसी को पानी पिने में कोई परेशानी न हो, और जो भी इस पानी को पिए, वो शारीरिक रोग से मुक्त हो जाये।
इसीलिए कहते हैं, जो व्यक्ति यमुनोत्तरी धाम आकर यमुनाजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं, तथा यमुनोत्तरी के खरसाली में शनिदेव का दर्शन करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यमुनोत्तरी के सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से ही लोगों के समस्त पाप धूल जाते है और वे परमपद को प्राप्त हो जाते हैं।
असित मुनि | Asit Muni
पुराणों के अनुसार यहाँ असित मुनि का निवास स्थान था। वह रोज़ यमुना में स्नान करने के बाद गंगा नदी में भी स्नान करने जाया करते थे, लेकिन समय के साथ-साथ वह बूढ़े हो गए, और उनके लिए गंगा नदी के दुर्गम रास्तो को पार कर पाना कठिन हो गया, उनका इतना श्रद्धा भाव देखकर देवी गंगा ने अपनी एक छोटी धारा यमुना नदी के पास ही बहा दी ।
बन्दरपूँछ | Bandarpunch
पुराणों के अनुसार लंकादहन के बाद जब हनुमान जी की पूंछ में आग लगी थी, तब उन्होंने अपनी पूंछ की आग यहीं बुझाई थी जिसे आज बन्दरपूँछ के नाम से जाना जाता है ।
यमुना नदी के अन्य नाम | Other names of river Yamuna
- यमुना देवी को सूर्य देवता, और बादलों व सांझ की देवी सरन्यु देवी (संजना देवी ) की पुत्री माना जाता है। इसी तरह से यमुना मृत्यु के देवता भगवान यम की बहन भी हैं, और इसी कारण उन्हें यमी के नाम से भी पुकारा जाता है ।
- यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है।
पहला पड़ाव यमुनोत्री | First stop Yamunotri
महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा मे आए | तो उन्होंने अपनी यात्रा यमुनोत्री से ही आरंभ की, इसके बाद वह गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड की यह चार धाम यात्रा की जाती है।इस स्थान पर ट्रेकिंग करना बेहद कठिन है, लेकिन यह देखने लायक है, क्योंकि यह वह स्थान है जहां पवित्र फूल, ‘ब्रह्म कमल’ साल में एक बार जुलाई-अगस्त के दौरान खिलता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इस फूल का दिव्य महत्व है।
कुंड | Kund
- यहाँ दो गर्म पानी के कुंड हैं, जो की सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से प्रसिद्द हैं | जिसमे से सूर्य कुंड के पानी का प्रयोग भोजन पकाने और गौरी कुंड के पानी का प्रयोग स्नान करने के लिए किया जाता है | गौरी कुंड मन्दाकिनी नदी के तट पर स्तिथ है |
- सूर्यकुंड का प्राचीन नाम ब्रह्म कुंड है, जो कि सबसे अधिक गर्म कुंड माना जाता है | जिसका तापमान लगभग 195 डिग्री फारेनहाइट है | इसमें से एक विशेष ध्वनि निकलती रहती है, जिसे ओम् ध्वनि कहा जाता है |
- सभी तीर्थयात्री यहाँ सूर्य कुंड के गर्म पानी में एक मलमल के कपड़े में मुट्ठी भर चावल और आलू पकाते हैं । और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं | सूर्य कुंड के निकट ही दिव्य शिलाखंड स्थित है। इसे ज्योति शिला भी कह जाता है। कहा जाता है कि सूर्य कुंड में स्नान करने के बाद यमुनोत्री आने वाले तीर्थयात्रियों की थकान पल भर में दूर हो जाती है।
FAQ
Q. यमुनोत्री में किसका मंदिर हैं ?
Ans. यमुना देवी का।
Q. चार धाम यात्रा कहा से शुरू होती है ?
Ans. यमुनोत्री से ।
Q. मुझे यमुनोत्री कब जाना चाहिए?
Ans. मई से जून और सितंबर से नवंबर के बीच
Q. यमुनोत्री जाने के लिए कितनी चढ़ाई है ?
Ans. लगभग 6 किलोमीटर
Q. जानकीचट्टी से यमुनोत्री कितने किलोमीटर है?
Ans. हनुमानचट्टी से 13 किलोमीटर और जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।