माता देवकी पूर्वजन्म कथा | Mata Devaki Purva Janma Katha in Hindi

माता देवकी पूर्वजन्म कथा | Mata Devaki Purva Janma Katha in Hindi

माता देवकी और वसुदेवजी के पूर्व जन्म की कथा | Mata Devaki or Vasudev ji Ki Purva Janma Katha

अपने पहले जन्म में, स्वयंभू मन्वन्तर में वसुदेवजी, सुतपा नाम के प्रजापति हुए और माता देवकी का नाम पृश्नि था। यह इन दोनों का सबसे पहला जन्म था। अपने उस जन्म में श्रीहरी विष्णु को अपने पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए दोनों ने हजारो वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर भगवान् विष्णु की घोर तपस्या की। जिससे विष्णुजी प्रसन्न हुए और प्रकट होकर इनसे वर मांगने को कहा। जिस पर सुतपा और पृश्नि ने प्रभु को अपने पुत्र रूप में जन्म लेने को कहा।

भगवान् विष्णु भी दोनों की तपस्या से इतने अधिक प्रसन्न थे कि दोनों को अपना माता-पिता बनाने की उत्सुकतावश में भगवान् ने उन्हें 3 बार तथास्तु तथास्तु तथास्तु कहकर वर दे दिया। जिसके कारण अपने पहले जन्म में भगवान् पृश्निगर्भ के नाम से जाने गए।

अपने दूसरे जन्म में, माता देवकी का जन्म देवमाता अदिति के रूप में और पिता वसुदेव का जन्म ऋषि कश्यप के रूप में हुआ। जिनके पुत्र स्वरुप भगवान् ने दूसरी बार उपेंद्र के रूप में जन्म लिया। अपनी छोटी कद-काठी के कारण इन्हें वामन कहा जाने लगा। जो कि नारायण के दस अवतारों में से एक, पांचवे अवतार थे।

अपने तीसरे जन्म में, ही ये दोनों भगवान् कृष्ण के माता-पिता बने थे। पर क्या आप जानते हैं कि वामन अवतार के बाद और कृष्ण अवतार से पहले, राम अवतार के समय भी देवकी माता, मर्यादा पुरुषोत्तम राम की माँ थी। राम अवतार के समय देवकी माता का जन्म कैकयी के रूप में हुआ था।

दरअसल त्रेता युग में जब नारायण अपने सातवें अवतार, राम के रूप में धरती पर प्रकट हुए तो दासी मंथरा के बहकावे में आने के कारण, माता कैकई ने भगवान् राम को 14 वर्ष के वनवास पर भेज दिया था। इसी कारण अपने अगले जन्म में माता कैकई का जन्म माता देवकी के रूप में हुआ। अपने पूर्व जन्म में माता कौशल्या के पुत्र को उनसे दूर करने के कारण ही इस जन्म में उन्हें अपने पुत्र श्रीकृष्ण से 14 वर्षों तक ही दूर रहना पड़ा। इसी कारणवश सब कुछ जानते हुए भी श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता को 14 साल बाद ही कंस की जेल से मुक्त कराया।

जैसा कि मैंने आपको अभी ऊपर की कथा में बताया कि त्रेता युग में माता कौशल्या को 14 वर्षों तक के लिए अपने पुत्र से बिछड़ना पड़ा इसीलिए माता कौशल्या का अगला जन्म द्वापर युग में माता यशोदा के रूप में हुआ। त्रेता युग में 14 वर्षों तक राम से अलग होने के कारण ही द्वापर युग में 14 वर्षों तक के लिए ही उन्हें श्रीकृष्ण का साथ प्राप्त हुआ।

जैसा की आप सभी जानते होंगे कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण की 2 मतायें थी। एक माता देवकी, जिन्होंने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, जिनकी पूरी कथा के बारे में आप सभी लोग अब जान चुके हैं। और दूसरी माता यशोदा जिन्होंने 14 वर्षों तक श्रीकृष्ण का लालन-पालन किया। पर क्या आपको पता है कि माता देवकी से 14 वर्षों तक दूर रहने के कारण केवल उनके पिछले जन्म का कर्म ही नहीं था। बल्कि एक वरदान भी था जो कि भगवान् विष्णु ने माता यशोदा को उनके पूर्व जन्म में दिया था।

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