मैया यशोदा पूर्वजन्म कथा | Maiya Yashoda Purva Janma Katha in Hindi
मैया यशोदा और नन्द बाबा के पूर्व जन्म की कथा | Maiya Yashoda or Nand Baba Ki Purva Janma Katha
अपने पहले जन्म में, मैया यशोदा मनु की पत्नी सतरूपा थी। इन मनु के नाम पर ही हमें मनुष्य कहा जाता है। सृष्टि की रचना के समय सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया था। जिसमे से एक भाग का नाम ‘का’ हुआ जिससे मनु की उत्पत्ति हुई और दूसरे भाग का नाम ‘या’ हुआ जिससे सतरूपा की उत्पत्ति हुई। इसीलिए ही हमारी देह को ‘काया’ भी कहा जाता है।
दोनों ने हजारों वर्षों तक भगवान् विष्णु की तपस्या की। दोनों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तब दोनों ने भगवान् से उनके सामान ही पुत्र की इच्छा जताई। जिससे भगवान् विष्णु ने कहा कि मेरे समान तो दूसरा कोई नहीं है। इसीलिए त्रेता युग में, अपने सातवें अवतार में, मैं स्वयं ही आपका पुत्र बनकर जन्म लूंगा। तब आप दोनों दशरथ और कौशल्या के रूप में जन्म लेंगे। जिसके बाद जब त्रेता युग आया तब भगवान् विष्णु ने स्वयं भगवान् राम रूप में दशरथ जी के घर जन्म लिया।
इसके बाद अपने अगले जन्म में, सतरूपा ने धरा नाम की कन्या के रूप में जन्म लिया। जो कि आगे चलकर 8 वसुओं में से एक वसु द्रोण की पत्नी बनीं। द्रोण ही अपने अगले जन्म में नन्द जी बने। तो चलिए आगे की कथा में जानते हैं की कैसे धरा बनीं मैया यशोदा और द्रोण बनें नन्द बाबा।
द्रोण और धरा का कोई भी पुत्र न होने के कारण दोनों ने सहस्त्रों वर्षों तक प्रभु नारायण की घोर तपस्या की। जिससे नारायण प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। प्रभु नारायण को देखकर धरा ने प्रभु को ही अपने पुत्र रूप में जन्म लेने का वर मांग लिया। परन्तु समस्या ये थी कि प्रभु का अगला अवतार श्रीकृष्ण का होना था और प्रभु पहले ही माता पृश्नि को उनके गर्भ से जन्म लेने का वर दे चुके थे।
प्रभु ने धरा से कहा कि आपको मेरे दो अवतारों तक की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। परन्तु धरा इस बात पर राजी न हुई और अपने अगले अवतार में ही प्रभु को अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने की बात पर ही अड़ी रहीं। धरा द्वारा इतना आग्रह करने पर भी जब प्रभु नहीं माने तो, धरा को, प्रभु का उसके पुत्र रूप में जन्म न लेने के वियोग सहन नहीं हुआ और वह अपने द्वारा की गयी तपस्या को साक्षी मानकर अपना देह त्याग करने को सज्ज हो गयी।
धरा द्वारा अपने प्रति इतनी व्याकुलता और धरा की ममतामयी पुकार के कारण प्रभु भी अपने आप को इस ममता से वंचित न रख सके और उन्होंने धरा को कहा कि माँ मैं अपने अगले अवतार में माता पृश्नि के गर्भ से जन्म लेने के लिए वचनबद्ध हूँ।
इसीलिए अगर आप चाहें तो अपने अगले कृष्ण अवतार में, अपने पहले दिन से लेकर 14 वर्षों तक के लिए ही मैं आपका पुत्र बनकर आ सकता हुँ। जिससे आपको, मुझे अपने पुत्र रूप में पाने के लिए अधिक प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ेगी और मुझे भी आपकी ममता और स्नेह से अधिक समय तक वंचित नहीं होना पड़ेगा। इस पर माता धरा राजी हो गयीं। इस प्रकार प्रभु का माता पृश्नि को दिया हुआ वचन भी भंग न हुआ और उन्होंने माता धरा की भी इच्छापूर्ति कर दी।
तो इस प्रकार द्वापर युग में द्रोण का अगला जन्म नन्द बाबा के रूप में हुआ और धरा का जन्म मैया यशोदा के रूप में हुआ। तो इसी कारण अपने कृष्ण अवतार में भगवान् अपनी माता देवकी से 14 वर्षों तक दूर रहे।
अब आपके मन में यह सवाल होगा कि भगवान् ने कब और कैसे, माता देवकी के पूर्व जन्म में ही, माता पृश्नि को उनके गर्भ से जन्म लेने का वर दिया। भगवान् ने माता पृश्नि के गर्भ से उनके 3 जन्मों में 3 बार जन्म लिया है। इसके पीछे भी एक कथा है।
अगर आप इस कथा को विस्तार से पढ़ना चाहते है तो दिए गए बटन पर क्लिक करें।