विघ्नहर्ता श्री गणेश की जन्म कथा | Vighnaharta Shree Ganesh Birth Story

कैसे हुआ श्री गणेश का जन्म, क्यों सब कुछ जानते हुए भी काटा महादेव ने अपने ही पुत्र का शीश,आखिर क्यों गणेशजी के धड़ पर एक गज का ही शीश लगा । आइये इन प्रश्नो का उत्तर नीचे दी हुई कथाओ के माध्यम से जानते हैं ।
कैसे हुआ श्री गणेश का जन्म | How Shri Ganesh was born
यह बात उस समय की है, जब ताड़कासुर नामक राक्षस ने ब्रम्हदेव से केवल शिव पुत्र (जिसमे माता शक्ति का कोई योगदान न हो) के हाथो ही मरने का वरदान प्राप्त कर लिया। जिसके परिणाम स्वरुप महादेव की ऊर्जा से जन्मे कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया। परन्तु इसके बाद कार्तिकेय पुनः अन्य असुरो को मारने के लिए चले जाते हैं, जिस पर माता पार्वती अकेली हो जाती हैं। जिस पर महादेव देवी पार्वती को दूसरे पुत्र की प्राप्ति के लिए नारायण का तप करने के लिए कहते हैं। जिससे उन्हें मनचाहे पुत्र की प्राप्ति हो सके ।
काफी वर्षो के कठोर तप से प्रसन्न होकर नारायण प्रकट होते हैं, और माता पार्वती नारायण से एक पुत्र का वरदान मांगते हुए कहती हैं, कि उन्हें एक ऐसा पुत्र चाहिए, जो ब्रह्मदेव की तरह ज्ञानी हो, नारायण की तरह तेजस्वी और निपुण हो और महादेव के समान निर्मल और स्नेही हो ।अर्थात देवी पार्वती, नारायण से , त्रिमूर्ति के समस्त गुणों से युक्त एक पराम् तेजस्वी पुत्र की कामना करती हैं । जब उन्हें यह वर मिल जाता हैं, तब वह अपनी साधना पूरी करके कैलाश की तरफ निकल जाती हैं।
महादेव गजासुर के पेट में स्थापित हुए | Mahadev established in Gajasur’s stomach
वही दूसरी और महिसासुर पुत्र गजासुर, महादेव की कठोर तपस्या कर रहा था। जिससे प्रसन्न होकर महादेव उसे वर देने पहुंच जाते हैं। पर वह असुर महादेव से उसके उदर में ( पेट में ) रहने का वर मांग लेता है। जिसके कारण देवी पार्वती महादेव से मिल नहीं पाती हैं, और इस पर क्रोधित हो जाती हैं ।
जब गजासुर ने महादेव को अपने पेट में रख लिया तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया । इस पर नारायण एक ग्वाले का और शिव वाहन नंदी एक नाचनेवाले का रूप धर कर गजासुर के सामने पहुंचे और उन दोनों ने गजासुर का खूब मनोरंजन किया । जिससे प्रसन्न होकर गजासुर ने नारायण रुपी ग्वाले को वर मांगने को कहा। जिस पर नारायण ने महादेव को मुक्त करने का वर माँगा । गजासुर महादेव का अनन्य भक्त था और सदैव ही महादेव के साथ ही रहना चाहता था । इसीलिए उसने महादेव के साथ, अपने किसी भी रूप में रहने का वर माँगा । जिस पर महादेव ने उसे यह वर दे भी दिया।
आगे कथा में आपको यह भी पता चलेगा कि गजासुर का यह वर कैसे फलित हुआ ।
महादेव ने काटा गणेशजी का सर | Mahadev cut off the head of Ganesha
एक बार देवी पार्वती अपनी पुत्र प्राप्ति की कल्पना में खोई रहकर अपनी उबटन से (मैल) एक अति सुन्दर मूर्ति का निर्माण करती हैं, और नारायण के वरदान स्वरुप उसमे प्राण भर दिए जाते हैं । यह एक अत्यंत सुन्दर बालक होता है। जिस पर सभी मोहित होते हैं । सभी देव इसे देखने के लिए लालायित होते हैं। एक दिन शनि देव भी इस बालक को देखने पहुंच गए। परन्तु शनि देव की दृष्टि पडते ही इस बालक के चरित्र में परिवर्तन आना शुरू हो गया और यह बड़ो का अनादर भी करने लगा।
दूसरी तरफ जब नारायण ने गजासुर के पेट से महादेव को मुक्त किया । तब इसकी सूचना पाते ही देवी पार्वती अपने शक्ति रुपी उस बालक को द्वारपाल नियुक्त कर स्नान करने चली जाती हैं और उस बालक को आदेश देती हैं, कि उनकी अनुमति के बिना किसी को भी अंदर प्रवेश न दिया जाये।
जब महादेव वापस लौट कर कैलाश आये तो उस बालक ने महादेव को भी अंदर जाने से रोक दिया महादेव का ऐसा अपमान देख सभी देवता, नंदी और अन्य गण उस बालक से युद्ध करते हैं और परास्त हो जाते हैं।
यहाँ तक तो ठीक था । परन्तु शनि देव की दृष्टि के कारण उस बालक को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया था । जिसके कारण वह सभी का अपमान कर रहा था। ऐसा करते हुए नारायण और ब्रह्मदेव जब उसे समझने पहुंचे, तो उसने उन दोनों का भी अपमान करना शुरू कर दिया। इसके बाद उसने महादेव और उनकी वेशभूषा का भी मजाक उडाया। जिससे क्रोधित होकर महादेव ने अपने त्रिशूल से अहंकार से भरे उस बालक का शीश धड़ से अलग कर दिया । ऐसा एक श्राप के कारण हुआ था।
ऋषि कश्यप ने दिया महादेव को श्राप | Sage Kashyap cursed Mahadev
बहुत समय पहले माली और सुमाली दो असुरो ने महादेव की घोर तपस्या कर उनसे अभयदान माँगा । जिस पर महादेव, किसी भी संकट में पड़ने पर उनकी रक्षा के लिए विवश थे । जिसका लाभ उठा कर उन्होंने तीनो लोको में आतंक मचाना शुरू कर दिया । इसी प्रकार उनका सूर्य देव के साथ युद्ध हुआ और जब सूर्यदेव उनका वध करने जा रहे थे। तब महादेव को बीच में आकर उन्हें बचाना पड़ा और महादेव ने सूर्यदेव पर ही अपना त्रिशूल चलाकर उन्हें मरणासन्न अवस्था में अपने रथ से निचे गिरा दिया।
जब ऋषि कश्यप को यह पता चला तो अपने पुत्र कि यह दशा देख उन्होंने महादेव को श्राप दे दिया कि जिस प्रकार उनका पुत्र (सूर्यदेव) मरणासन्न अवस्था में उनके सामने पड़ा है । उसी प्रकार महादेव भी अपने पुत्र को अपने इसी त्रिशूल से आहत करेंगे। इसी श्राप के कारण ही महादेव को सब कुछ जानते हुए भी अपने पुत्र का शीश काटना पड़ा ।
श्री गणेश को मिला गज का शीश | Shri Ganesh got the head of Gaj
जब देवी पार्वती को यह सब पता चला तो उन्होंने महादेव को इस बालक का परिचय देते हुए कहा कि यह हमारा ही पुत्र है, तो कृपया आप इसे पुनः जीवित कर दीजिये । इस पर महादेव की असहमति जताने पर इससे क्रोधित होकर उन्होंने दुर्गा का रूप धर समस्त संसार को नष्ट करना शुरू कर दिया। बाद में जब सभी देवताओं ने महादेव से उसे पुनः जीवनदान देने की विनती की । जिस पर महादेव ने देवी पार्वती को उसे पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया और उस प्रलय को रुकवा दिया । इसके बाद ही देवी का क्रोध शांत हुआ ।
महादेव ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काटा था । जिसके कारण उस सर को पुनः लगा पाना असंभव था । इसीलिए महादेव ने दूसरे शीश के लिए सभी देवताओ और नारायण से उत्तर दिशा में जाने को कहा और यह कहा कि आपको जो भी पहला प्राणी मिले उसका शीश काटके ले आओ ।
सबसे पहले मार्ग में ही उन्हें गजासुर मिल गया जो कि वर्षो से इसी दिन की प्रतीक्षा कर रह था। और वह स्वेच्छा से ही नारायण को अपना शीश ले जाने के लिए प्रस्तुत हो गया । महादेव के कहे अनुसार वह मार्ग में मिला पहला प्राणी भी था इसी कारण नारायण उसी का शीश काटके ले आए, और इस प्रकार पूर्व में महादेव द्वारा गजासुर को दिया गया श्राप फलित हुआ और गजासुर का शीश उस बालक के धड़ से जोड़ा गया। गज का शीश होने के कारण उस बालक को गजानन नाम दिया गया । फिर जब उन्हें गणों का प्रमुख बनाया गया तो उन्हें गणपति और गणेश के नाम से जाना जाने लगा ।
तो ये थे विघ्नहर्ता श्री गणेश के जन्म की कथा । उम्मीद है आपको अब अपने सभी प्रश्नो का उत्तर मिल गया होगा । तो आइये मेरे साथ मिल कर बोलिये गणपति बाप्पा मोरया मंगल मूर्ती मोरया ।