Ganesh Ji Mushak Sawari Katha, first worshiper Shri Ganesh Vahan Mushak | प्रथमपूज्य भगवान श्रीगणेश का वाहन मूषक है। आइए जानते हैं आखिर भगवान गणेश ने अपना वाहन मूषक को ही क्यों चुना? क्या है इसके पीछे पौराणिक कथा
श्रीगणेश के मूषक को अपना वाहन बनाने की दो कथाये प्रचलित हैं, तो आइये जानते इन दोनों कथाओ के बारे में ।
क्रौंच को मिला एक असुर बनने का श्राप | Krauncha is cursed to become a demon
एक बार की बात है। क्रौंच नामक एक गन्धर्व था। एक दिन उसे इंद्रदेव की सभा में देरी हो गयी। जिससे वह जल्दी में कही जा रहा था। इतनी शीघ्रता में क्रौंच, तपस्या में लीन ऋषि वामदेव से टकरा गया। जिसके कारण ऋषि की तपस्या भंग हो गयी और उन्होंने क्रौंच को एक मूषक (चूहा) बन जाने का श्राप दे दिया। क्रौंच के द्वारा छमा याचना करने पर उन्होंने गणेश द्वारा मुक्ति का उपाय बताया।
एक विशालकाय मूषक बनने की वजह से वह ऋषियों को सताने लगा। वह ऋषियों का सारा अन्न खा जाता था। मिटटी के सारे पात्रो को नष्ट कर देता था। वेद, पुराणों को कुतर जाता था, और उत्पात मचाता रहता था। इस कारण उसे मुशिकासुर नाम से भी जाना जाने लगा।
श्रीगणेश ने बनाया मुशिकासुर को अपना वाहन | Shri Ganesh Vahan Mushikasura
एक बार की बात है। एक दिन मुशिकासुर ऋषि पराशर के आश्रम में पहुंच गया और वहाँ भी वह यही सब उत्पात मचा रहा था। उस समय वहाँ गणेशजी भी मौजूद थे। तो ऋषियों ने गणेशजी से प्रार्थना की कि वह इस मूषक के उत्पात से उन्हें बचाये और हमारा यज्ञ सफल करने में सहायता प्रदान करें । इस पर गणेशजी ने मुशिकासुर को पकड़ना चाहा तो मुशिकासुर पाताल लोक में जा के छुप गया। गणेश जी भी उसके पीछे-पीछे वहाँ पहुंच गए और पाताल लोक से उसे बाहर ले आये और उन्होंने मुशिकासुर को अपने पाश में बांध लिया।
उस समय श्रीगणेश का जन्म हुआ ही था। सभी देवताओ के पास अपना-अपना एक वाहन था। पर गणेशजी के पास अपना कोई भी वाहन नहीं था। तो एक बार जब कुबेरदेव ने श्रीगणेश को खाने के लिए आमंत्रित किया। तब उनके पास कोई वाहन न होने की वजह से वह बहुत निराश हुए और तभी भी वह अपने लिए एक उपयुक्त वाहन की तलाश कर रहे थे। इस विशालकाय मूषक को देखकर उन्होंने सोचा की क्यों न मैं इसे ही अपना वाहन बना लूँ। तो इसी विचार से गणेशजी मुशिकासुर की पीठ पर बैठ गए।
गणेशजी के बैठने मात्र से ही मुशिकासुर के प्राण निकल गए और वह भागना तो दूर अपने पेरो पर खड़ा हो पाने में भी असमर्थ हो गया और गजानन से अपनी पीठ पर से हटने की विनती करने लगा। अपने सभी पापो की छमा याचना करते हुए उसने कभी भी ऋषियों को न सताने, पाप कर्म न करने और गजानन जैसा भी उससे कहे वैसा करने का वचन दिया।
बस फिर क्या था गजानन तो चाहते भी यही थे तो उन्होंने उसे अपना वाहन बनने को कहा। इस पर मुशिकासुर बोला कि, हे प्रभु मैं तो आपका भार भी उठा पाने में असमर्थ हूँ और मैं एक असुर हूँ आप एक देवता। हमारा कहाँ का मेल है। इतना कहते ही श्रीगणेश ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे असुर योनि से मुक्त कर एक सर्वश्रेष्ठ विशाल मूषक बना दिया और उसे अपना वाहन बनने की और अपना भार उठा पाने की शक्ति भी प्रदान की।
श्रीगणेश ने बनाया गजमुखासुर को अपना वाहन | Shri Ganesh made his vehicle Gajmukhasur
कुछ अन्य किवदंतियो के अनुसार असुरराज गजमुखासुर स्वर्ग पर अपना आदिपत्य ज़माने के लिए अपना राज्य छोड़कर महादेव की तपस्या करने घने जंगलो में चला जाता है, और भूखा-प्यासा रहकर महादेव की कई वर्षो तक तपस्या करता है। जिससे प्रसन्न होकर वह महादेव से किसी भी अस्त्र-शस्त्र से न मरने का वरदान प्राप्त कर लेता है। जिसके चलते देवराज इन्द्र और बाकी सभी देवता महादेव के समक्ष इस समस्या के समाधान के लिए उपस्थित होते हैं।
इसके बाद महादेव, गणेशजी को इसके समाधान के लिए भेजते हैं। इसके बाद श्री गणेश और गजमुखासुर में युद्ध प्रारम्भ हो जाता है। युद्ध करते-करते गजमुखासुर एक चूहे का रूप धर लेता है। जैसे ही वह चूहे के रूप लेता है। वैसे ही गणेशजी उसके ऊपर बैठ जाते हैं। भार अधिक होने के कारण गजमुखासुर श्रीगणेश से अपने पापों की छमा मांगता है। जिससे प्रसन्न होकर गणेशजी उसे अपना वाहन बना लेते हैं।
तो इस प्रकार विघ्नहर्ता श्री गणेश को अपना वाहन मूषक मिला।
सार :- चूहा अहंकार, लालच और अनियंत्रित इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। चूहा किसी भी चीज को कुतर देता है। भले ही खाये कुछ भी न। लेकिन सभी चीजों को नष्ट कर देता है। भगवान् गणेश का चूहा पर सवारी करना हमें अपने अहंकार, हमारी अनावश्यक इच्छाएं और हमारे लालच को नियंत्रित करने की आवश्यकता को ही दर्शाता है।
सीख :- भटकता चूहा मनुष्य के डगमगाते मन का प्रतीक होता है। इसीलिए हमें चूहे रुपी इस मन पर सवार होकर अपनी इच्छाओ को नियंत्रित करना चाहिए और अपने मन को सभी प्रकार के लालच और अहंकार से मुक्त रखना चाहिए। ऐसे व्यक्तियो पर ही गणेशजी की विशेष कृपा रहती है और उसके मन-मंदिर में गणेशजी जैसी चेतना और बुद्धि का विकास होता है।
इस कथा को पड़ने के लिए मैं आपका आभार वयक्त करता हूँ। इसी कथा की तरह श्रीगणेश के जन्म की कथा भी बहुत रोचक है। जिसमे एक श्राप की वजह से श्रीगणेश का सर धड़ से अलग हुआ था और एक वरदान की वजह से ही उन्हें गज का नया शीश मिला था। अगर आप इस कथा को पड़ना चाहते हैं, तो निचे दी गयी इस लिंक पर क्लिक करे।
FAQ
Q. गणपति वाहन का क्या नाम है?
Ans. कुछ कथाओं के अनुसार क्रौंच और कुछ कथाओ के अनुसार गजमुखासुर
Q. गणपति ने अपने वाहन का क्या नाम रखा ?
Ans. श्री गणेश ने अपने वाहन का नाम अजीन्य रखा